जग क्या जाने प्रेम की परिभाषा
कोई परिन्दों से सीखे प्रीत निभाना ...-
लड़ने के लिए मुश्किलों से पहाड़ सा हौसला रखता हूं ...
FB- Neera... read more
गुजरेगा वक्त तो गुजारा हुआ वक्त याद आएगा,
रिश्तों की शाख पर बैठा परिंदा न जाने कौन देश
उड़ जाएगा-
शहर जैसे-जैसे
फैलता जाता है
गांव धीरे-धीरे सिमटता है
खुली हवा में उड़ने वाला पंछी
धीरे-धीरे पिंजड़े का आदी बनता है ...
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चाॅंद से इक रिश्ता है जैसे
हर रात मेरी छत पर आकर वो मिलता है मुझसे ...-
जरुर जीतेंगे
आज नहीं तो कल ये मंज़र जरुर बदलेंगे
क्या हुआ जो गिर गये हैं ठोकर खाकर
हम उठेंगे और फिर चलेंगे
नहीं मिल जाती मंजिल जब तक
हम लड़े थे हर मुश्किल से
और जीतने तक लड़ते ही रहेंगे ...
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स्त्री ...
कैसे ये सब कर लेती हो
कैसे सब सह लेती हो
जुबां तो दी है न ईश्वर ने तुम्हें...?
फिर क्यों किसी को अपनी आवाज़ बनने देती हो
स्त्री ...
सोचो ग़र तुम न होती
कैसे बढ़ता ये संसार
कैसे बढ़ता घर-परिवार
कैसे सफल होता पुरुष
कैसे तैयार होता मानवता का आधार
स्त्री ...
न जाने कितनी सदियों से
है तुम्हारा ये हाल
है तुमसे ही शुरुआत धरा की
फिर भी हो तुम बुरे हाल
स्त्री ...
अब तुम जागो
अब तुम बोलो
लड़ो अपने अधिकारों
बोलो अपना अस्तित्व बचाने को
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असफलताऍं मंजिल तक पहुॅंचने के आपके सफर में ईंधन का काम करती है ...
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