प्रभु श्रीराम, आपने कहा —
"मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता…"
यह सुन मेरी आत्मा थम गई, और मेरी भक्ति काँप उठी है
आपने मुझे ‘ऋणदाता’ कहा?
तो फिर दिन -रात जब मैंने अश्रुओं से आपका नाम जपा क्या वो सौदा था?
वो हर छलांग,हर अग्नि-परीक्षा,हर मृत्यु का आमंत्रण…
क्या वो मूल्य चुकाने के लिए था?
प्रभु...मैंने तो आपकी एक झलक के लिए अपने अस्तित्व को मिटा दिया था…
और आज आप मुझे कह रहे हैं —"मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता..."
नहीं प्रभु.............. भक्ति कभी व्यापार नहीं होती।
मैंने जब भी कुछ किया, वो आपके नाम में लीन होकर किया,
मुझे बस आपकी मुस्कान चाहिए थी,
आपकी कृपा,भक्ति,अनन्य प्रेम चाहिए था
और आज,जब आपने ऋण कहा, तो मेरी आत्मा पूछ रही है —
क्या मैं आपकी भक्ति में नहीं, हिसाब में हूँ?
“प्रभु! यदि आपने स्वयं को मेरा ऋणी कहा,
तो समझिए कि मेरी भक्ति कलंकित हो गई।
मेरे स्वामी मैंने कुछ नहीं किया…जो कुछ हुआ, वो तो आपकी कृपा से ही संभव था।”
हे राम… मुझे न उऋण कीजिए, न ऋणी मानिए।
बस मुझे वहीं रखिए जहाँ आपकी छाया हो........-
यूँहीं चुर्र -घुस्स हो जाती हैं दिमाग में😂
दिखावा नह... read more
ये मेरा सफर, पीछे छोड़ा गाँव, पीछे छोड़े माँ -बाबा, और बहुत सारी यादें
ट्रेन की खिड़की के पार, धुंधलाए खेतों में जैसे भूली हुई कई कहानी बसी हो।
हाथ में चाय का कप, इसमें अदरक की खुशबू नहीँ, यादें घुली हैँ।
ये सफ़र नहीं — ये उन लम्हों की परछाइयाँ हैं जो कभी लौट कर नहीं आतीं।
हर स्टेशन जैसे कोई बीता साल हो. मैं कुछ अपने पीछे छोड़ता, कुछ साथ लिए चला जा रहा हुँ। खिड़की से बाहर स्टेशन पर कोई हरी झंडी ट्रैन ड्राइवर को नहीँ
मानो मुझे दिखा कर कह रहा हो “रुको चाहे मत, पर वापिस लौट कर भी आना।
इस कागज़ के कप में भरी चाय की हर घूँट
वही एहसास को महसूस कराती है जो —
पहली बार घर से दूर जाने पर हुआ
किसी की आंखों में छुपी खामोश विदाई पर हुआ
लगता है, ट्रेन नहीं चल रही— यादें चल रही हैं
'और मैं"
ऐसा मुसाफ़िर जो चला है अंतहीन सफऱ पर.................
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मंदिर की भीड़ में एक छोटा सा बालक हाथ में मुरझाया सा
बिल्वपत्र लिए उपेक्षित सा एक कोने में खड़ा था।
उसके पास फूल नहीं थे,ना मंहगा दीपक, चढ़ावा या चांदी का थाल था। उसके पास था तो बस एक बिल्वपत्र,
सर्वस्व समर्पण का भाव और सच्ची श्रद्धा.
वह धीरे-धीरे शिवलिंग के पास आया, अपने दोनों हाथों को जोड़
झुक कर कातर आवाज़ में धीरे से बस इतना ही बोल पाया
"हे प्रभु, ये पत्ता नहीं मेरी प्रार्थना है… इसे स्वीकार कर लो…"
तभी सुगन्धित मंद -मंद बयार बहने लगी,
महादेव मुस्काये किसी ने नहीं देखा, पर हरेक ने महसूस किया
कि कुछ अद्भुत घटा है।बिल्वपत्र सीधे शिव के हृदय तक पहुंचा।
शिव भोले हैं, सरल हैं, और प्रेम के सागर हैं।
जब भी कहीं कोई बच्चा बिल्वपत्र पकड़े रोता है,
तो शिव खिंचे चले आते हैँ,याचक के सिर पर अपना हाथ रखने-
एकलव्य – अग्नि में तपा हुआ शिष्य
गहन,सूना सा,वीरान जंगल,
वहीं एक बालक धनुष उठाए खड़ा था।
उसके लिए ना कोई तालियाँ, ना कोई गुरु था
बस उसकी आँखों में चमक थी – सपनों की, संकल्प की, और आत्मबल की,
उसने महलों की चौखटें नहीं चूमी,
उसे किसी शस्त्रागार की सुविधा नहीं मिली।
उसके पास थी तो बस, माटी से बनी गुरु की मूर्ति,खुद पर अटूट विश्वास,
ऐसी साधना, जो समय को भी झुका दे।
जब द्रोणाचार्य ने उसे अस्वीकार किया, तो उसने खुद को स्वीकारा।
जब गुरु ने उसका अंगूठा मांगा –ना कोई शिकायत, ना कोई क्रोध।
बस एक हल्की सी मुस्कान, और अगली ही क्षण…
वो अंगूठा धरती पर,लेकिन उसका नाम अमरता के शिखर पर
मैं वही एकलव्य हूँ – जो हार कर भी अमर हूँ।
मैं अनदेखा रहकर भी इतिहास रचता हूँ।
मैं वही आदर्श हूँ, जो हर ठुकराए हुए स्वप्न में फिर से खड़ा होता हुँ।
जब कोई कहता है –"तुम नहीं कर सकते…"
तो मेरी आत्मा चीख कर कहती है –
नहीं करना..?, छोडो भी...., मैं कर चुका हूँ!"-
कहते हैं हर घर में कोई ना कोई छुपा हीरो होता है।
वो ना टोपी पहनता है, ना उड़ता है,बस चुपचाप भरता है फ्रिज की बोतलें. जो बोतल भरते वक़्त नल की धीमी धार को देखता है और सोचता है — "मेरी ज़िंदगी भी कहीं इतनी ही धीमी तो नहीं हो गई?"
बोतल भरते-भरते जब वो गीला हो जाता है, तो कोई नहीं पूछता "तू ठीक है?" जब उसकी भरी हुई बोतलें अगले दिन खाली मिलती हैं, तो वो सिर्फ मुस्कुरा देता है —वो जानता है, ये काम छोटा है...पर अगर वो ना करे, तो घर की शांति भंग हो जाएगी, प्यासे लोग नाराज़ हो जाएंगे, और हाईकमान कहेगा —"घर में कोई काम का नहीं है
बोतल भरनेवाले को शाबाशी नहीं मिलती, पर वो शिकायत भी नहीं करता,
क्योंकि... वो जानता है —
"पानी सिर्फ बोतल में नहीं, रिश्तों में भी ठंडक लाता है"-
"ऑपरेशन सिन्दूर"
गोलियों की आवाज़ों में गूंज रही थी माँओं की चीखें, बहनों की दुआएँ और
बच्चों की सिसकियाँ भी, लेकिन जवान अडिग थे,
अपनी जान हथेली पर रख,सीना ताने कदम उस रणभूमि पर रखा
जो उनका विजय तिलक करने को आतुर थी,पवित्र थी,
लेकिन बलिदान चाहती थी, अपने सपूतों को अपने से मिलाना चाहती थी
मेरी मातृभूमि का लाल गोली लगने से पहले सिर्फ़ इतना बोला,
"माँ... सिन्दूर अब मिटेगा नहीं... क्योंकि मैंने उसे अपने लहू से सींच दिया है..."
उसकी आँखें बंद हो गईं... पर माँ की मांग चमक उठी।
जब ऑपरेशन पूरा हुआ, तो जीत की खुशी में तिरंगा लहराया,
हर एक की आँख में आँसू थे,आँसू — गर्व के भी, दर्द के भी।
"माँ का बेटा शहीद हुआ...उसने मातृभूमि का ऋण चुकता कर दिया..."
ऑपरेशन सिन्दूर कोई युद्ध नहीं था,
वह माँ की पवित्रता की रक्षा था,वह राखी की लाज था,
वह सिंदूरी सपना था — जिसे जवानों ने सच कर दिखाया।
जय हिन्द- जय सशस्त्र सेनायें-
जब कभी भारतीय सशस्त्र सेनाओं ने “हर हर महादेव”, राजा रामचंद्र की जय, भारत माता की जय का घोष किया है, दुश्मन की रूह काँपी है। वे जान जाते हैं कि अब मौत दस्तक दे चुकी है
सेना सिर्फ ताकत नहीं, वह भावना है,गर्व है,वादा है — कि कोई भी दुश्मन हो, कितनी भी ताकतवर गोलियाँ हों, "हम # # #@@ # # देंगे" — क्योंकि हम भारतवासी हैं,
और हमारी सेना — अदम्य, अमर, अजेय।
“हमारे पास सिर्फ हथियार नहीं, जज़्बा भी है.....
हमारे पास हथियार ही नहीं, ग़ैरत भी है..
हम लड़ते हैं..........
क्योंकि हमसे बेहतर कोई है भी नहीं.........-
हमेशा हर कोई नहीं देखता कि कौन कितना प्रयास करता है।
पर क्या वही मायने रखता है?
शायद नहीं।
जब आप जानते हो कि आपने कितनी ईमानदारी से अपना सर्वोत्तम दिया, तो आपको खुद पर गर्व होता है। यही आत्मसंतोष आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
श्रेय तो क्षणिक होता है|
सच्चा समर्पण आदत बन जाए तो जीवन खुद ही सुंदर हो जाता है।
कल फिर से नया दिन होगा। नई कोशिशें होंगी। और आप... फिर से अपना श्रेष्ठ देने को तैयार रहना — चाहे कोई देखे या नहीं।-
* विनम्र *
नजरें नीचे किये प्रभु के चरणों में बैठा रहूँ
* प्रचण्ड *
सौ योजन समुद्र लांघ क्षण में फुँक दू लंका
# हनुमान
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हॉस्पिटल में दाखिल होते ही
दरवाजे के दाएँ -बाएँ या सामने
देखा होगा मंदिर सभी ने
जो भी गुजरता है, सिर नवा सामने
मन ही मन श्रद्धा जता बढ़ता है आगे
Doctor, मरीज, परिचर, आमजन, और भी
क्या ये पर्याप्त नहीं- यह बताने के लिए की
कोई तो शक्ति है विज्ञान से परे भी
कुछ तो है जो है सर्वोपरि-सर्वोच्च
सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्कृष्ट, और सर्वसमर्थ भी........-