मैत्री में यदि करुणा कि भावना आ जाए तो फिर मित्रता मरने लगती है।
मित्रता का भाव ही यही है कि सामने वाले मनुष्य को ठीक वैसे ही स्वीकार किया जाए , प्रेम किया जाए जैसा वो है।
मनुष्य गलतियों का पुलिंदा अपने सर पर ढ़ोते हुए चलता है छोटी सी भूल होती है और वह नीचे गिर पड़ता है।
मित्रता वह है जो उस पुलिंदे को उठाकर फेंक दे ना कि सदैव ये याद रखे कि एक भूल की वजह से वह गिर पड़ा था।
ना तो यह कि हाय बेचारा सही से अपनी गठरी नहीं लेकर चल पा रहा।
मित्रता सहयोग की भाबना है प्रतियोगिता की नहीं।-
काठ की परी!
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ख्याल अब नहीं रहे पहले से
सवाल अब नहीं रहे पहले से
सवाल ये कि ज़िन्दगी क्या है
मलाल ये कि ये ज़िन्दगी क्या है?-
जीने वीने की ये बातें
हँसने रोने की सौगातें
सब बातें हैं
क्या मतलब है?
कोई गया है कोई यही है
कोई है सबकुछ
कोई कुछ भी नही है
पर सब बातें है
महज बातें है
इन बातों का क्या मतलब है?
किसी का जीवन प्रेम है
कोई खालीपन से भरा है
कोई एकाकी सा ही सुखी है
इन बातों का क्या मतलब है?
हम सोचे तो हजार है बातें
ना सोचे तो सब बेमानी
जीवन एक ऐसी ही शय है
कभी है सब तो कभी बेमानी-
तुम जब हंसते हो
मैं बेहद खुश हो जाती हूं
मुझे तुम्हारे हंसने का कारण पता नहीं होता
मैं जानना भी नहीं चाहती
मैं बस देखती हूं तुम्हें हंसते हुए
और खुद भी तुम्हारे साथ मुस्कुरा देती हूं।
अचरज भरी तुम्हारी निगाहें
जब चारों तरफ देखती हैं
तो मैं सोचती हूं
कि काश मैं तुम्हारा मन पढ़ पाती
तुम्हें बता पाती कि ये दुनिया
मुझे तुम्हारी इन बड़ी - बड़ी आंखों में
दिखती है।
तुमसे पहले प्रेम का मतलब केवल मैं रहा
मेरा मैं अब मां में परिणत हो गया है।-
एक घर था और घर क्या कुछ लोग हुआ करते थे
एक रस्ता था जिसपर रोज का आना जाना था
कुछ दुकानें , इमारतें और कुछ पेड़ थे
जो खड़े रहते थे चुपचाप पर अपने से लगते थे।
इन कुछ बरसों में घर तो अभी भी है
लोग नहीं रहे।
रास्ता अब भी है पर आना जाना नहीं रहा
वो दुकानें अब कॉम्प्लेक्स हैं
वो इमारतें अपार्टमेंट्स
पेड़ का नामो निशान भी नहीं है।
एक शहर था जो कभी अपना था
अब एक शहर है जिसे अपना बनाने की कोशिश ताउम्र रहेगी।-
कुछ नए लम्हें फिर आयेंगे
खुशियों की गठरी फिर खोली जाएगी।
बीते साल की कसक फिर भी मन के इक कोने में दबी रहेगी,
कुछ रंग बिखेरे जायेंगे
समय के साथ लगेगी रेस फिर से
जीवन की पटरी पर फिर से ये नया कैलेंडर चल पड़ेगा।-
जाने वाले अपने पीछे
छोड़ जाते हैं कितने ही काश
अफसोस उमर भर का
चलती हुई सांसों का पश्चाताप
जीने की इच्छा ना होते हुए भी
जीने का जद्दोजहद
जाने वाले तो चले जाते हैं
ले जाते हैं एक हिस्सा उनका भी जो रह गए हैं।-
मैं घर में होकर
घर से दूर जाना चाहती थी
मुझे तब घर का मतलब शांति मालूम था.
आज घर से दूर अथाह सन्नाटे में
उस शोर- शराबे की बहुत कमी महसूस होती है.
यहाँ इस कैंपस में दो नीम के बड़े पेड़ हैं
एक बड़ा वृक्ष अशोक का है
एक विशालकाय बरगद हुआ करता था
जिसके नीचे बिल्लियाँ बैठा करती थी.
पेड़ के नही होने पर अब उस पार की सड़क
बहुत साफ दिखाई पड़ती है.
बिल्ली का रुदन भी कभी- कभार सुनाई देता है.
मैंने एक घर की तलाश में कितने घर बना लिए हैं.-
सारा समय दूसरों के मन को सम्भालने की कोशिश में
मेरा मन कहीं छुप गया जाकर।
ऐसा रूठा है कि लाख आवाज़ों पर भी बाहर नहीं आता
और जिन्हें मैं सम्भालती रही
उन्हें पता है अपने आप को संभालने का हुनर।-