कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
चंदन काठ के बनल खटोला, ता पर दुलहिन सूतल हो
उठो सखी री माँग संवारो, दुलहा मो से रूठल हो
आये जमराजा पलंग चढ़ि बैठा, नैनन अँसुवा टूटल हो
चार जने मिल खाट उठाइन, चहुँ दिसि धूँ-धूँ उठल हो
कहत कबीर सुनो भाई साधो, जग से नाता छूटल हो-
बत्तीसी दिखाकर..
नरक का स्वामी हँसा
हँसकर मुच्छड ने ताना कसा..
श्रीमान !
नरक सुख भोगो
नरक की जय जय जय बोलो..
(अनुशीर्षक में पढ़ें....
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यमराज के आदेशों का जिनपर कर्ज है।
आज उन मौत के दूतों के भी सीने में दर्द है।— % &-
यमराज भी भैंस पर बैठकर सिर्फ टहल रहा है
यमलोक का काम कोई और ही कर रहा है
सवाल ये है कि अब मरने वालों का क्या हसर होगा
क्या अब सबका जहन्नुम में ही बसर होगा
मुझे तो अभी तक अज़दादों की सदाएं सुनाई पड़ती हैं
वो मना करते हैं मरने से, वरना हमारा भी यही हशर होगा-
" हैं क्षत्रियों जैसा बाहुबल भी, हैं पंडितो जैसी पंडिताई.,
हैं कुम्हार जैसी कला आपार, हैं यादवों जैसी चतुराई.।"
" हैं विष्णु जैसा शांत मन, ब्रम्हा सा ज्ञान भंडार हैं.,
हैं महाकाल सा क्रोध भी, सुन काँपे ये संसार हैं.।"
" हैं भरा शून्य सा राग हैं, अनन्त का आगाज हैं.,
न्याय पूर्ण, धर्म लिप्त और सत्य की आवाज हैं.।"
" श्रेष्ठ कर्म रखने वाले, हिन्दुत्व का सच्चा मान हैं.,
चित्रगुप्त के वंसज हैं हम, हमसे गौरवमयी इतिहास हैं.।"
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हे कृतांत मृत्युधिपति यमदंड-धारी
हे भानु पुत्र अन्तक सर्व-न्यायकारी
मुक्तहं यमपाश यमदीप समर्पयामी
मुक्त सुक्त युक्त अभुक्तहं-अंतर्यामी-
प्राय: सुना है कहते मैंने, खुद को, सबको,
"हे प्रभु! ले चल। हे प्रभु! ले चल!,"
विषाद की स्तिथि में।
देखा है आज मैंने, खुद को, सबको,
नरक चतुर्दशी पर यमराज के नाम का
दीपक जलाते हुए।
मानव के इस रूप को उसका पाखंड कहूं,
या कहूं उसका भोलापन, मुझे नही पता।
किंतु इतना समझ गई हूं कि,
उत्साह एवं आशा की एक छोटी सी किरण भी,
बड़े से बड़े दुख को मृत्यु के घाट उतारने का
साहस रखती हैं।-
मैं जब भी किसी लड़के को तेज या फिर लहराते हुए मोटरसाइकिल चलाते देखती हूँ
तो लगता है जैसे यमराज अपने भैंसे के साथ निकले हैं और किसी के प्राण लेकर ही लौटेंगे-
यमुना जिनकी पटरानी हैं उनके भक्तों को यमराज क्यों सताने लगे!
जीजा के संबंधियों को भला कोई परेशान करता है क्या?
सभी भाइयों को यम द्वितीया की हार्दिक शुभकामनाएं।
ठाकुरजी की कृपा सदैव बनी रहे।
यशस्वी भवः-
मैं साधारण सी स्त्री हूँ
ना कोई दैवीय शक्ति से परिपूर्ण हूँ
ना हूँ सावित्री जो यमराज से जीती थी
ना हूँ सती जो स्वामी की साँसों तक जीती थी
ना डालो बोझ मुझ पर, कि मैं सब कुछ कर सकती हूँ
जीने दो मुझ को भी,मैं साधारण सी स्त्री हूँ
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