ऐसा नहीं हैं कि उसने दामन-ए-मोहब्बत छोड़ा
आता हैं प्यार उसे, बस हम पर नहीं आता
किसी पहेली सा हैं, हिसाब-ए- इश्क़ नादां
ख़ुदको खुदसे भी घटा, तो सिफ़र नहीं आता
हम जानते हैं उन रास्तों की नियत को
जो उधर जाता हैं, कभी इधर नहीं आता
खींचता रहता हैं मेरे दिल मे रह-रह-कर
ये क्या हैं जो लफ़्ज़ों में उतर नहीं आता
मेरी तन्हाइयों के ये फैले हुए वीरां सहारा
तुम्हारी रहगुज़र मे शज़र क्यों नहीं आता
चाहे जितना भी मिले, कम हीलगता हैं
मोहब्बत को सुकून का हुनर नहीं आता
दिल डूब जाता हैं, गम को पिघलते ही 'श्रेष्ठ'
मगर इन आँखों में, अश्क़ उतर नहीं आता
श्रेष्ठ वर्मा... ✍✍
-