Aman  
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सब उपमा कबि रहे जुठारी। केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी।।
~ तुलसीदास
Joined 3 November 2017


सब उपमा कबि रहे जुठारी। केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी।।
~ तुलसीदास
Joined 3 November 2017
19 JAN 2021 AT 19:46

पिता मेरे कल्पतरु
मेरी सभी इच्छाओं के पूरक,
पिता मेरे हिमालय
मेरी सभी समस्याओं की अड़चन,
पिता मेरे महासिंधु
मेरे जीवन के प्रत्येक मोड़ के गंतव्य
किंतु मैं...
मैं किसी विशेषण योग्य नहीं

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13 NOV 2020 AT 21:31

कुछ लोग हैं मिलते नहीं
कोई ख़त भी हैं लिखते नहीं
कुछ बात भी कहते नहीं
कुछ बात भी करते नहीं
कुछ प्रेम में सुनते नहीं
कुछ प्रेम में कहते नहीं
फिर क्या ही सुना जाए?
और क्यों ही सुना जाए?

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13 APR 2020 AT 1:10

मुस्काते अधर औ मधुर कंठ ने ही
है प्रेमी बनाया ज़्यादा से ज़्यादा
विचारूं तुम्हीं को मैं ज़्यादा से ज़्यादा
निहारूँ तुम्हीं को मैं ज़्यादा से ज़्यादा
करूँ बातें तुमसे मैं ज़्यादा से ज़्यादा
सुनूं बातें तुमसे मैं ज़्यादा से ज़्यादा
रहूं संग तुम्हारे मैं ज़्यादा से ज़्यादा
यही वर है ईश्वर से ज़्यादा से ज़्यादा
यही मन भी चाहे है ज़्यादा से ज़्यादा

रहा दे वचन तुमको ज़्यादा से ज़्यादा
"रहूँगा समर्पित मैं पूरा का पूरा"

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15 NOV 2018 AT 20:13

जादूगर हैं मेरे पिता
क्योंकि जो जल रहे चराग़ हैं देहरी पर मेरे
रुई के फाहों से होकर उनमें
ईंधन नहीं, पसीना बह रहा है

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14 NOV 2018 AT 17:28

क्या हैं तुम्हारे शब्द?
कुछ तो कहो!
लेकिन कहना कुछ ऐसा
जिससे शून्यता खत्म हो जाए
मन को ढांढस मिल जाए

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19 AUG 2018 AT 23:34

यमराज भी भैंस पर बैठकर सिर्फ टहल रहा है
यमलोक का काम कोई और ही कर रहा है

सवाल ये है कि अब मरने वालों का क्या हसर होगा
क्या अब सबका जहन्नुम में ही बसर होगा

मुझे तो अभी तक अज़दादों की सदाएं सुनाई पड़ती हैं
वो मना करते हैं मरने से, वरना हमारा भी यही हशर होगा

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15 AUG 2018 AT 18:52

दिल का आँखा खोल गई
पता नहीं क्या बोल गई
होंठो की गठरी खोल गई
मुझमें अपना रस घोल गई
कहा उधारी शौक नहीं
चुंबन का मोल भी तौल गई
चौंकाया तो तब उसने
जब मेरी बांह मरोेर गई
हल्की मुस्की से झोल कर गई
मन ही में हमको लोल कह गई

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10 AUG 2018 AT 7:47

इस कोरे नीरस पाती में, निशा की अधजली बाती में
अपनी नवगुंठित छाती में
क्या रहस्य छिपाए घूम रही?

प्रेमी दिल के नर्तन में, निज भीतर के परिवर्तन में
किस प्रीतम के आकर्षण में
किस गीत को गाकर झूम रही?

सबमें प्रिय की छवि देख देख, आंनदित हो कर केक केक
सबको भेंट कर रेख रेख
क्या सबको ही तुम चूम रही?

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24 JUN 2018 AT 8:00

पर अधर तुम्हारे काँप गए
क्या हृदय के कंटक भाँप गए
अंतर की पीड़ा देखी न
बाहर बाहर से ताक गए
तुम रोक तो सकते थे
पर अधर तुम्हारे काँप गए

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2 JUN 2018 AT 21:52

कल रात प्रिये जो चुंबन था
वह इस गर्मी में चंदन है
जो बकर बकर तुम लगा चली
ये आग हृदय की बुझा चली
सब सोच रहे हैं, आग बुझी
मतलब इनकी तो बात जमीं
पर वो क्या जानें, जो प्यास बुझी
वह अमर अनंत अनाविल है।

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