कुछ इस तरह मेरे में ख़ुसनसीबी की छाया है,
मैंने एक नहीं चार माँओं का प्यार पाया है-
ऊंची कीमत का मंज़र मनभावन है,
मौसी है महंगाई ना की डायन है..!
पेट्रोल ने ऊँची कीमत पायी है,
महंगा डीजल उसका जुड़वां भाई है,
एलपीजी का प्राइस बढ़ना पावन है.!
मौसी है...
सब्जी के हैं भाव बढ़े इतराती है,
फल खाने की बात कहां से आती है,
प्याज अकड़ में ऐंठा जैसे रावण है..!
मौसी है...
दाम बढ़े हैं अब ये रोना भूलो तुम,
सपने देखो और गर्व से फूलो तुम,
सूखा मौसम नहीं ये असली सावन है.!
मौसी है...
राष्ट्रद्रोहियों सुन लो तुमको होश नहीं,
कोरोना की लूट है उनका दोष नहीं,
टैक्स बिना इकोनॉमी आवन जावन है.!
सिद्धार्थ मिश्र-
प्यारे बच्चों
बहुत खुश किस्मत हो तुम
जो मुझ जैसी smart मौसी ओर मा यहा तुमको मिलीं है।।-
चूंजे जैसे बने विधायक,
पार्टी घेर के बैठी है..!
सभी भ्रमित हैं क्या होगा?
नीयत किसकी कैसी है?
रातों में सरकार बने,
सबकी ऐसी तैसी है.!
महाराष्ट्र में जंग शुरू,
जन का कौन हितैषी है?
दुर्योधन हैं मुख्य यहाँ,
लोकतंत्र का द्वेषी है.!
स्वतंत्र गुरु महंगाई अब,
राष्ट्र की घोषित मौसी है.!
सिद्धार्थ मिश्र-
ना ही उर्दू मुसलमां है, ना है हिन्दू मेरी हिंदी
ये उर्दू है मिरी ख़ाला, स्वयं है माँ मेरी हिंदी।
मुझे बेहद मुहब्बत है, ज़ुबाँ की सारी बहनों से
हाथ थामे मिरी ख़ाला, अटकती जब मेरी हिंदी।
बला की ख़ूब लगती है, लफ़्ज़ के नीचे जैसे तिल
लगाती नुक़्ता की बिन्दी, सँवरती जब मेरी हिंदी।
नज़ाकत उर्दू से सीखी, इश्क़ में इसके डूबे हम
वीरता, भक्ति और वत्सल, सिखाती है मेरी हिंदी।
सुना जब उर्दू का लहज़ा, ज़ुबाँ पर आया जिगर से "वाह"
हुआ नतमस्तक स्वतः सर, सुनी जब भी मेरी हिंदी।
इन्हें मज़हब में न बांटो, ज़ुबाँ दिल ही की रहने दो
तेरी उर्दू तिरी हिंदी, मेरी उर्दू मिरी हिंदी।।-
हिंदी माँ है मेरी,
और अंग्रेज़ी मौसी लगती है....!
माँ खाना देती हैं,
और मौसी मुझसे दूर ही रहती है....!-
मौसी
बचपन में बच्चों को सबसे प्यारी लगती है
बच्चों पर पूरा प्यार लुटाती है
जब भी आते बच्चे माँ जैसी जिम्मेदारी निभाती है
और अपना पूरा हक भी जताती है
वो तो वैसी ही रहती ,बच्चे बडे़ हो जाते हैं
अब दोनों में भ्रम बढ़ जाते हैं
बच्चे भूल चुके है प्यार दुलार उसका
पर वो अभी भी अपना हक जताती है|-
कितनी भी कम उम्र हो उनकी,
मौसी बनते ही वह जाने कैसे?
माँ जैसी जिम्मेदार हो जाती है।
माँ से एक क़दम आगे चलती है!
और बच्चों में हिस्सेदार हो जाती है।-
कहते हैं "माँ" सी जो हैं
वो मासी कहलाती हैं
मैंने तो देखा आप में
वही चेहरा है जो मेरी
"माँ" जैसा है ...-