जाने क्यूँ सुकून
मिल रहा है
कोई है जो
मिल रहा है जैसे
जिंदगी को जुनून
मिल रहा है
तू रहबर है मेरा
चाहतों में बसता है मेरे
वक़्त के आईने में
दिखता है मेरे
बस तेरी झलक से
मेरा दिन बन रहा है
तुझसे मिलने के बाद
मैं खुद से मिल गई हूँ
ग़मो को छोड़
अब तुझमे घुल गई हूँ
तेरी कशिश रहती है
हर पल को मेरे
तेरे आने से
मैं सवंर गई हूं।
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तपती धूप में
वीरान सड़कों पर
छांव के साये
पसारे दरख्त...
दरकिनार कर उदासियां
राह तकते
करीने से सदियों खड़े हैं....
शायद ! यही तो प्रेम है...
गुलाबी सर्दियां
ओस टपकती रातें
केले के पत्तों पर
टप टप की मृदुल ध्वनि का संगीत..
झड़ते हरसिंगार को चुनते
भींगते कपोल....और
उंगलियों के पोर में
समाता सुवास....
प्रेम ! ऐसा ही है...
छुअन से विलग
अनुभूत!!
प्रीति
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मौसमी इश्क़ करते वो थकते नहीं
एक हम हैं जो पूरा साल हो खपते नहीं-
कोई शिकवा नहीं है
इस मौसमी मिजाज़ से
जायज़ सा लगा मुझे
ऐसी बेरुखी कुदरत की
ज़रूरत नहीं बिल्कुल
कोई तब्दीली की
इस तूफ़ानी सूरत ए हाल में
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क्यों अकेला है यहां हर आदमी?
किसलिए कमतर हुई है रोशनी.?
क्यों दिखावा बन गयी है ज़िन्दगी?
गर्म बूंदें, आंसुओं की चाशनी..!
लब पे ख़ुशियों के तराने हैं अगर,
दिल के भीतर दर्द की है रागिनी.!
ख़ुद से बच कर हम कहां जाएं ख़ुदा,
क्या कोई ऐसी जगह भी है कहीं.?
भागकर जीवन बिताया भी मगर,
इशरतें हैं चार दिन की चाँदनी..!
चाहतों की बात अब मत कीजिये,
इश्क़ का एहसास भी है मौसमी..!
सिद्धार्थ मिश्र-
आम हो या वोटर
बेशक मौसमी हैं
पर समय आने पर
आम होते हुए भी
खास बन जाते हैं।
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मुद्दतों बाद बड़ा बेशुमार आया है...
आज मुझे भी मौसमी बुखार आया है...-
।।....खुशियाँ देने का एक अनोखा तरीका...।।
हम भी अब मौसमी हो गए,
जिसको जो पसंद हैं,
वैसे ही बन जाते हैं....।।
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बेसबर कर रही हैं ये मौसमी सरगोशियाँ मुझे
सौतन लगती है तुम्हारी ये मशरूफियत मुझे-