जवानी एक दोराहा है संभलने के लिए,
और सभी लोग यहीं आकर भटकते क्यों हैं...-
मोड़
कैसा ज़िंदगी का मोड़ आ गया
मशीन जैसे भागते फिरते जैसे का दौड़ आ गया ।
पराये तो पराये ही थे
अपनों ने भी मुख मोड़ लिया
मदद माँगना पर सभी ने मुख मोड़ लिया ।
दिल के दर्द को किसी ने समझा
अपना मोड़ मैंने बदल लिया
रब के दरवाजे पर माथा टेक लिया ।
सब ने हमे बोझ समझा
दुनिया से नाता तोड लिया
अपना मोड़ खुद चुन लिया ।-
जिस मोड़ से मुड़ते ही मिल जाते थे हम
आज उस मोड़ से मुड़कर बिछड जाना पडा
मोड़ तो मोड हैं मुड़ने के लिए होते हैं
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दिल से पुकारा तुम्हे
दिल में बसाने के लिए,
दिल ही तोड़ दिया इस कदर
पीछा छुडाने के लिए,
खंजर ने तार तार किया
दूसरी दुनिया में पहुंचाने के लिए,
समय बदलता है साहब
खुदको दोहराने के लिए,
अब हँस कर मरुंगी मैं
सिर्फ तुम्हे सिखलाने के लिए,
मैं भी देखुंगी उस दिन ,कौन बना है
तुम्हे इस मोड पर लाने के लिए..-
मुश्किलों के वार जिंदगी में निशान छोड जाते हैं,
उन्ही निशानों से जिंदगी में खूबसूरत मोड आते है।-
लोगो के दौर वाले मोड़ से
मेरा मोड़ थोड़ा अलग है ।
क्युकी मैं वो भेड़ चाल वाली
मोड़ से कभी जुड़ी ही नहीं !
जहां खड़ी हो जाऊ
बस वहां कोई बैठा ना रहे !
ऐसा एक मोड़ मेरी
पूरी ज़िन्दगी की कहानी
मुझे बनानी है !
और दूर दूर तक
सबके जुबान तक ले आनी है !
हां यही वो मोड़ है
यही वो तोड़ है
जो मेरी ज़िन्दगी का जोड़ है !
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वजाय ढुंडने के यहाँ वहाँ, ढुंडते पुराणे रास्तोंपर
तो शायद मिल सकता था मैं, किसी मोड पर महकता हुआ-
●●पता तो हैं●●
चलने सें पहलें
रास्ते के साथ साथ मंजिल भी तय करलेना
हर एक मोड पे मिलतें हैं नये रास्ते यहाँ
हर रस्ता जाता नहीं मकानो तक
हर पल ठेहरता नहीं बरसों तक
पैंर थरथरायेंगे तुम्हारे भी
जैसें मेरें थरथरां रहें हैं...!
न जानें कौनसी
पहेली सुलझा रहें हैं सब
पता तो ठीक हैं ना ?
किस गली,किस चौराहे का नाम हैं?
किस दरवाजे पें दस्तक देना हैं?
वो शिकस्त खाया हुँआ आदमी?
जानता तो हैं आपको?
वहाँ पोहचनें से पहले
एक बार खुदसें बात करलेंना...किसी मोड पर
क्या पता
मंज़िल वहीं पें हो...!
-मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे
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