Vinaysheel Mishra  
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Joined 14 January 2017


Joined 14 January 2017
24 APR 2020 AT 5:50

that silken rope which binds peoples with their thoughts , emotions and love but never
entangles in itself .

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24 APR 2019 AT 6:20

मरता है एक आदमी
तब बस मरता है एक शरीर
पर जब मरता है ज्ञान
तो मर जाते है सभ्यता , संस्कृति
मानवता और जमीर . . .

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8 APR 2019 AT 6:03

शहर आजकल के सोते नहीं

दौडते हैं

ये थकते नहीं

थकने वाले

यहाँ बसते नहीं

हाँ हैं कुछ शहर ऐसे भी

जो सोये रहते है

जिन्हें जगाना है मुश्किल

क्यों कि इन्हें है ही नहीं जगना

इनकी नीँद है

या है निश्चेतना

जागृति जिनके लिए

है बस टूटा सपना....

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5 MAR 2019 AT 6:27

तकनीकी के दौर में प्रेम न पाये ठौर

लोगों प्रीततकनीक का साफ्टवेयर कुछ और


5/2/019

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26 NOV 2018 AT 9:00

मानवीय आकार लिए
अपने अपने धागों से बंधी
निर्निमेष दृष्टि से तकतीं
कठपुतलियां...
व्यग्र कर देती हैं मुझे
एहसास करा जाती हैं ये
एक घनीभूत विवशता का
उस पीडा का कि
क्यों विवश हैं हम
अपने अपने दायरों में
अपने अपने सूत्रों बँध कर ही
गति और अभिव्यक्ति के लिए
अगर स्वतंत्रता है
तो इनके लिए क्यों नहीं ?
क्या ये हैं बस
हमारी उस छटपटाहट का
स्मरण कराने के लिए कि
विवश हैं हम लाचार हैं
एक अपाहिज मानसिकता लिए....

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14 AUG 2020 AT 4:17

ऐ ख्वाहिशें ! क्यों हर सूरत तेरी अधूरी है
क्या ऐसी ही अपनी हर सूरत तुझे प्यारी है

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8 AUG 2020 AT 9:20

हो सावन या भादों या कार्तिक
करें यही बातचीत
पतझड में भी गाए मनमीत . . . ? ? ?

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8 AUG 2020 AT 8:59

खिला छाये कास
झरता जाता हरसिंगार है
आते न तुम ? हुआ धूमिल शृंगार है . . .

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6 AUG 2020 AT 1:38

खोजी होना पड़ता है
नजरों में नया नजरिया
चाह को उत्सुक रखना पड़ता है . . .

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6 AUG 2020 AT 1:19

1. शौर्य
2. धैर्य
3. कर्तव्य निष्ठा

जैसे रामलला निज गृह हैं आए
वैसे उनके चरित राष्ट्र में आए
कलियुग भी सतयुग बन जाये

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