●●●प्रेम●●●
जो कुछ बात हैं हमारे बीच
आज तुम बता भी दो
कितने दिनोसें दिल मैं बैचेनी हैं
कहीं मेरा दिल सिकूड तो नहीं रहाँ?
अंदर हि अंदर तेज होनें वाली साँसें
अब अंधेरी गलियों मैं जिंदगीकीं दौड मैं खडी हैं
मैं बैबस/थका हारा लंबी लकिर खिंचता जा रहा हुँ
तुम बात नहीं करती अब
तुम दाटतीं नहीं अब
तुम प्यार नहीं करती अब
तुम-तुम-तुम यैसें कई प्रश्न आते हैं मिलने मुझसें
मैं किसीसें रूबरु नहीं होता अब
कहीं प्यार में देश तो बीच नहीं आ रहाँ
कि बीज हीं बो दिये हैं समाज में
इसमें कोई दोराह नहीं कि तू मुझसें प्यार नहीं करती
मैं औतप्रोत प्रेम से भरा हुँ
ना कि मन को मलीनतासें भर रहा हुँ
तुम्हें डर तो नहीं लग रहा
यहाँ पे लोकतंत्र और चलाने वाले हिटलर के फॉलोवर हैं
पर तुम डरना नहीं
मैं तो नहीं डर रहा हुँ
तुम्हें और मुझे और हर प्यार कि भाषा बोलणे वालो को
जोडे हुयें रखनेवाला "संविधान"भी हैं !
जो कुछ बात हैं हमारे बीच
आज तुम बता भी दो....!
- मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे
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विद्रोही
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उनसे इश्क बेपनाः था
चाय के तलबगार होते तो हमें समझ पाते...!
- मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे
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हमने चाहाँ था चाय की तरह उनको
पर वो सस्ती शराब के आदी निकले...!
- मिलिंदा-
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हमने चाहाँ था चाय तरह उनको
पर वो सस्ती शराब के आदी निकले...!
- मिलिंदा 🔥-
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कोणत्या
स्वातंत्र्याच्या डिंग्या हाकाव्यात
स्वातंत्र्यातील कोणत्या तांड्यात राहावं
अरे
हाच कि तो स्वतंत्र नावाचा 73 वर्षाचा पीडित
जिथं नागड्या लोकांनी ५ वर्ष नाचाय आमच्या
उंबरठ्यावर येऊन
अन
घरांत हागुण जावं
निष्पाप बालकांना घेताही येत नाही
श्वास जगण्याचा
त्या बंद पडलेल्या हृदयांना
ऑगस्ट महिना असतोच जीवघेणा म्हणे....
हिजड्या दलालांनी
स्वातंत्र्या तुला विकावं
अन
त्यांच्या विकासच घोडं नाचावव.....
हा देश स्वातंत्र्यात/घुटमळतोय
फक्त
घुटमळतोय खऱ्या श्वासाच्या "स्वातंत्र्यासाठी"
-मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे-
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तेरा जाना तय था
और मेरा आगे बढणा...!
【-गर तू साथ होती तो वफा-ए-बातें कुछ और होती】
© मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे-
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इश्क सस्ता हुआ हैं
चलो आवो बाजार लगा हैं...!
- मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे-
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वो केहती रही कि मोहब्बत हे हमसें
और मैंने वो सच मान लिया....!
- मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे-
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सूर्याने एकदाचे येऊन जावे
रात्र असूनही भुकेला झोप नाही...!
© मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे-
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इथे
जन्म देऊन भागत नसतं
त्यासोबत
माणुसकीचे धडे दिलेत
तर
ते जगू लागतील "माणसांसारखी"...!
(माणसं "माणसचं"असावी)
© मिलिंद सुमन अशोक दामोदरे-