कुछ हज़ार सवालों के लिए लाखों जवाब ढूंढता हूँ,
और एक रात के उस सवाल के लिए आज भी कसाब ढूंढता हूँ ।-
चेहरा धुंध मे छुपा पर कमीज़ साफ है।
कभी कभी लगता है कि
तुम दिल्ली में बसने वाली मुम्बई हो।-
मायूसियों की स्याही
चेहरे पर कैसी छाई
ये मृग मरीचिकाएं
किस मोड़ तक ले आईं
खुद को संभालिए
यह कुफ्र उतारिए
जो अब भी ना समझे
तो निश्चित है जग हंसाई।-
Zindagi...
Ek paheli.. bngayi hai..
Na hi Mumbai..na hi Delhi .
...Sari duniya...mashroof si bewafa bngayi hai.. !!!-
तकती रहती हैं खिड़की पर, दो आँखे कुछ ऐसे...
दिल्ली के एक मकान से मुंबई दिखता हो जैसे...-
शहर मुम्बई ने मुझको सिखा दिया
गमले में मैंने यारों, जंगल लगा दिया-
कल तक लिंचिंग बड़ा प्रश्न था
और आज है शून्य,
साहब मैं पूछता हूँ आप लोगों से
आप लोगों के पास कोई पैमाना है क्या
लिंचिंग मापने का..?
क्या उन लिंचिंगों में ज्यादा दर्द था
जब आपकी कराहे निकल रही थी
चीख चीख कर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से
मैं जानना चाहता हूँ तमाम सेक्यूलर बुद्धिजीवियों से
कहाँ से लाते हो इतना दोगलापन..?
कब तक केवल एक पक्ष की बात करके
उनके गलत होने पर भी
उनके हक़ हुक़ूक़ के लिए लड़ लड़ के
अपने आप सेक्यूलर बने रहोगे..?
और धकेलते रहेंगे पूरे समाज को
भेदभाव और वैमनस्यता के दलदल में...?-