Ravi Sharma   (रवि शर्मा 'वीर')
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Joined 1 June 2017


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17 JAN AT 20:57

मिलने को एक बहाना चाहिए
ना मिलने के 100 बहाने होते है

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6 MAY 2024 AT 14:36

आसमां को देखिए तारों से बातें कीजिये
छोड़कर उस एक को सारों से बातें कीजिये

मुश्किलें हो या अकेलापन सताए गर कभी
जाइये जाकर के कुछ यारों से बातें कीजिये

बेबसी, ग़म और तन्हाई में रोना कब तलक
हो नहीं कोई तो दीवारों से बातें कीजिये

रौनके ज़ागीर थोड़ी है अमीरों की यहाँ
जाइये इक बार फ़नकारों से बातें कीजिये

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4 SEP 2023 AT 21:19

तुमने ही आवाज़ नही दी थी वरना,
जाने वाले रोके भी जा सकते थे।
मेरे आँसू पोछे भी जा सकते थे।

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3 SEP 2023 AT 10:29

खो गयी ग़ज़लें कहीं पर खो चुका है इश्क़ भी
बदनसीबी ओढ़कर के सो चुका है इश्क़ भी

आइए, मिलिए मगर न पूछिये क्या हाल है
समझिए होना नहीं था हो चुका है इश्क़ भी

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26 JUN 2023 AT 12:31

जो यूँ पलट-पलट के नज़रें मिला रही हो
पागल हुई हो या फ़िर पागल बना रही हो

सारे जहाँ की खुशियाँ तुम पर लुटा चुका मैं
तुम चंद तोहफें अब मुझको गिना रही हो

था 'वीर' वो पुराना धोखे में आ गया जो
अब बे-फज़ूल ही तुम आँसू बहा रही हो

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26 JUN 2023 AT 12:30

जो यूँ पलट-पलट के नज़रें मिला रही हो
पागल हुई हो या फ़िर पागल बना रही हो

सारे जहाँ की खुशियाँ तुम पर लुटा चुका मैं
तुम चंद तोहफें अब मुझको गिना रही हो

था 'वीर' वो पुराना धोखे में आ गया जो
अब बे-फज़ूल ही तुम आँसू बहा रही हो

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15 JUN 2023 AT 0:55

हमनें भी कई साल गुज़ारे है इश्क़ में
हमको भी तज़ुर्बा है वफ़ादार यार का

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31 MAY 2023 AT 21:27

समय कुछ यूँ गुज़ारा जा रहा है
किसी का हिज़्र काटा जा रहा है

किया कुर्बान अपना हक़ किसी ने
उसे हिस्सों में बाँटा जा रहा है

कहाँ होता है कोई यार अपना
कहाँ रिश्ता निभाया जा रहा है

नहीं इतना भी पागल हूँ नहीं मैं
यहाँ जितना बताया जा रहा है

जिसे अनमोल कहता था कभी मैं
उसे सिक्कों में पाया जा रहा है

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2 APR 2023 AT 20:03

हाथों में अब पहले वाला जाम नहीं
पहले जैसा मुझको अब आराम नहीं

दिन तो कट जाता है काम हज़ारों है
मसला तो रातों का है, कोई काम नहीं

उसकी सूरत आँखों में जिंदा है पर
उसके लब पर यारों मेरा नाम नहीं

रात चली आती है दिन के ढलते ही
मेरी किस्मत में इठलाती शाम नहीं

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22 JAN 2023 AT 19:37

राज़ अपना खुल गया है यार अब
क्यूँ भला डरना यहां बेकार अब

इक दफा छुपकर मिले बाज़ार में
हो गया किस्सा भी ये बाज़ार अब

किस लिए तुम देखती हो आईना
क्या तुम्हें मुझ पे नहीं एतिबार अब

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