फ़क़त मसाफत की ही तो आफ़त है
वरना मिलने में थोड़े - ही खिलाफत है ,,,,
*मसाफत :- दूरी *ख़िलाफ़त :- विरोध-
कितनी मसाफतें साथ लेकर आया हूं गाम गाम पर,
मगर जैसे कई सदियों का फासला तय करना अभी बाकी है।
कितनी ख्वाहिशों को जीते जी मरते देखा है मैंने,
अब भी लेकिन कई अरमान दिल में बाकी हैं।-
हर रोज तेरी मसाफ़त मेरी मोहब्बत का हौसला तोड़ देती है,
ये ज़िन्दगी हर रोज एक नया मोड़ लेती है....
कितने अजीब हैं तेरे खेल ऐ ज़िन्दगी,
ख्वाइशें देकर मौत की, तू मुझे ज़िंदा ही छोड़ देती है।।
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रूठ गए जो रकीब ए यार हमसे
वस्ल की रात इनायत कौन करेगा
मुसाफ़िर को मिल जाए गर मंज़िल
शहर की यार मसाफत कौन करेगा-
मसाफत राहो मे नहीं
दिलो मे होती हैं
कुछ लब्जों की मिठी बातें
शिरी सी लाजवाब होती हैं
हजारों किलोमीटर के मसाफतो
कुछ पल मे खत्म कर देती हैं
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सुबह से शाम
ढलते-ढलते
आदमी ही नहीं
थकता फ़क़त
शहर की हालत भी
बे-आज़ार हो जाती है
बड़े तपाक से
निकले थे जो बदन
किसी सुबह की
घड़ी में अक़्सर
सर-ए-शाम खीजे हुए
नज़र आते हैं
कारखानों की
चिमनियाँ कोफ़्त में
मुँह से धुआँ उगलती हैं
दौड़ती-फिरती सड़कें
हांफती गाड़ियों की
कतारों में रुकी-रुकी
सी रहती हैं
दिन बेशक उजले
नहीं करते रोज़ अता
रत्ती भर भी कुछ
मगर छीन ले जाते हैं
रोज़ थोड़ा सा जीवन
थोड़ी सी उम्मीद !!-
ख़्वाहिशों का क़द
आसमां सा ऊँचा है
चांद को छूने निकली हूँ
फाँदनी हैं कुछ मुश्किल मुँडेरें
क़दम पुख़्ता कर फ़र्लांग भर रही हूँ
कोशिशें छोटी-छोटी सही
किसी डगर पर ठहरती नहीं
हौसलों की मसाफत जारी है
छूँ लूंगी इक दिन आसमां को
चांद तारों को हमनवां बना लूँगी
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उसका ये मान था
की राह-ए-वफ़ा में
कोई न कोई साथी
मिल ही जाएगा मुझे !
नहीं होना मुझे
तुम्हारे घर का तूफान
न ही वह पीपल जो
दरार दे दीवारों कों...
ये ऐतबार शायद
उसे भी था कि
इस मसाफत में
सम्पूर्ण विश्व की
अरब जनसँख्या में
मेरा उसके सिवाय
कोई नहीं था....
बहुत कुछ नहीं था
मेरे हिस्से मेरे हक में
वह भी कहाँ थी
फिर भी जाने क्यों
उसे ये यकीन था
की कोई न कोई
मिल ही जाएगा मुझे !!-