Kalp Saxena   (एहसास)
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सिर्फ़ एहसास हैं ये...रूह से महसूस कीजिए
Joined 21 March 2019


सिर्फ़ एहसास हैं ये...रूह से महसूस कीजिए
Joined 21 March 2019
2 JUL AT 1:15

फिर किसी डूबती
सर-ए-शाम तुम्हें देखा
दिल में एक भूली बिसरी
सी याद ने अंगड़ाई ली

कंधे पर बस्ता और
आंखों पर पतले
फ्रेम का चश्मा
अब भी जमील था
वो हुस्न उस लिबास
की खुश्बू से थी
गुलों में रंग-ए-बहार

हमें ये झूठा इल्म
कि कूच कर चुके थे
उसके मुहाने से
पर शायद नहीं
उसके बारे में अब
बोलना छोड़ दिया था

फूल टूट जाएं
शाखों से मगर
डंठलें तो रह जाती हैं
वो दर्द कहीं नहीं गया
उसने छुपे रहना
सीख लिया था
बहुत भीतर सीने में
कहीं !!

~एहसास

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27 JUN AT 23:45

यूँ तो
बहुत कुछ नहीं मिला
इस ज़िंदगी में अब
गिला किस-किस
का करूँ !!

एक तेरा बिछड़ना
मगर मुझे अंदर से
ख़ाली कर गया !!

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25 JUN AT 8:39

कभी ये मुज़्दा भी कोई सहर लाए
चढाऊँ केतली चाय की आँच पर
एक कप मेरे लिए !!
पीछे-पीछे तुम्हारी आवाज़ आए...

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23 JUN AT 23:05

ये सहरें अक्सर उगीं
रोज़ नए कुल्फ़तों के
फ़रमान लिए !
न रुकीं न थमीं न पूछा
ज़िंदगी किस हाल में है

आसमां कभी आग
कभी पानी बरसाता रहा
झुलसती रही रूह कभी
पांव के जूते भीगते रहे

हो कर दर्जाचूर
दिन की थकान से
लौटा हूँ फिर तुम्हारे पास
तुम मा'शूक ख़ैर-ख्वाह मेरी
दामन में छुपा ले रात मुझे !!

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21 JUN AT 0:56

तुम्हारे बिना
रख़्त-ए-ख़्वाब है सिर्फ़
वह बिछौना वह सेज
अब आराम की जगह नहीं

दोनों तरफ़ ही
करवटें बदल कर देख लीं
नींद की गोलियाँ भी
नसों में घुल के
जज़्ब हो गईं

वह नींद पुर-सुकून
तुम्हारी हम-आग़ोशी
के सिवा फिर और नहीं

तुम्हारे बाद बचे
आंखों के क़ायदे हैं सिर्फ़
ये रातें पलकों के गिरने
उठने के सिवा कुछ नहीं !!

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19 JUN AT 0:05

बहुत जी करता है
लौटूँ तेरे शहर
फिर होकर उन्हीं
रास्तों से अंत में
तेरा घर आए

क्या ख़बर थी
तब तुमसे मिलना
तुम्हें देख पाने का
आख़री सानेहा होगा

तुम्हारे बाद
तुम्हारी रिक्तता में
उपजे सन्नाटों से
ये ज़िंदगी हिरासां है
और राहें पामाल

तुम्हारे चले जाने
से भी अधिक
कठिन रहा मेरे लिए
किसी को यह बता पाना
की तुमने मुझे
अस्वीकार कर दिया !!

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17 JUN AT 23:42

ये बीच राह
आन पड़ी बारिशें
तो लुभाती हमें भी हैं
हम खड़े हैं सिर छुपाए
भीगने को संग अब
तू जो हमनशीं नहीं !!

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31 MAY AT 23:51

तुमसे मिलकर
यूँ लगा जैसे
गुज़श्ता सालों से
दर-बदर ज़िंदगी को
मुक़ाम मिल गया हो
धूप के सफ़र को
पीपल की छाँव और
भटके हुए राही को
शहर मिल गया हो !!

बहुत कुछ नहीं
मिला इस ज़िंदगी में
कसक बाकी रही
ये और बात की
तुम्हें खोना मगर
सबसे बड़ी हानि
रहेगी मेरे जीवन की

यूँ तो जाकर
लौटा हूँ कई बार ही
बेसबब रास्तों से
तुम्हारे दर से लौटना
तुम्हें पीछे छूटते देख
सबसे कठिन वापसी
रही मेरे लिए !!

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19 MAY AT 0:36

सहेजे जाने चाहिए
सड़क से लगे फुटपाथ
उन पर लगीं बेंच

बचाए जाने चाहिए
लंबे रास्तों के किनारे
कतार में लगे दरख़्त

कहीं सिमटने न लगें
शहर के चौराहें-नुक्कड़
विकास के क्रम में

बेहतर है बची रहें
चुनिंदा चाय की दुकानें
महंगे रेस्त्रां के बीच

शहर में ज़रूरी है
बची रहें कुछ जगहें
वो जो नहीं मिल सके
हाथों की लकीरों में
वक़्त निकाल अपनी
व्यस्त जीवन यात्राओं से
कहीं तो मिल सकें !!

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10 MAY AT 22:45

बालकनी के
ठीक सामने ही था
एक नीम दूसरा
आँवले का पेड़

शाम तलक छाए
थके नीले आसमां पर
बादल रुई के फाहे से
बिखर जाते थे
कोई ख़ुश्क हवा का झौंका
नीम की पत्तियों से होकर
बालों में जैसे उंगलियां
फेरे गुज़र जाता था

कुछ दिनों बाद
इस घर इस शहर से
चले जाऊंगा
सब समेट लूंगा मगर
कहां ले जा सकूंगा
ये फ़लक ये बहती
बाद-ए-नसीम

शायद ये ज़िंदगी
फिर तरसे उसी
फुर्सत के लिए
कुछ शामें जो कि
तस्कीन बन कर आईं
धूप में जले दिनों के बाद !!

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