QUOTES ON #मक्कार

#मक्कार quotes

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11 JUL 2021 AT 14:47

हम इश्क़ करते-करते बे-ज़ार हो गए हैं
दिल टूटने के अब तो आसार हो गए हैं

पहचान थे कभी हम मुस्कान की लबों पर
रिश्ते के अब मरासिम लाचार हो गए हैं

उनकी वफ़ा के चर्चे मशहूर थे गली में
अब ज़ख़्म देने वाली तलवार हो गए हैं

वो सिर्फ़ थे हमारे हक़ था हमारा उन पर
गुस्से में वो भी रद्दी अख़बार हो गए हैं

आते हैं ख़्वाब उनके मिलते हैं हम ख़ुशी से
दुनिया में वो किसी के घर-बार हो गए हैं

क्या ख़्वाब क्या हक़ीक़त सब झूठ हो गया अब
जब जान कहने वाले ख़ूँ-ख़्वार हो गए हैं

बस जिस्म से मोहब्बत 'आरिफ़' कभी न करना
ऐसा किया है जिसने मक्कार हो गए हैं

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15 MAY 2020 AT 19:10

मक्कार कह लो, फरेब कह लो, कह लो जो तुम्हें जी में आए ,
जनता है नियत खुदा मेरा, तुम सब तो हो, बाहर के साये ।।

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23 JUN 2021 AT 20:43

आप अपनी 'मक्कारी पर लगाम' लगा देते
तो मेरी भी 'ज़बान पर विराम' लगा रहता

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28 NOV 2019 AT 18:33

KUCH LOG FAREBI MAKKAR HOTE HAI

FIRR BHI KISI KE SARR KE TAAJ HOTE HAI

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18 AUG 2017 AT 20:34

बेमतलब, बेतरतीब, बेवजह, बेवफा, वो संसार होता है,
जहाँ आपस में हो वैर-भाव, वो कहाँ परिवार होता है!

तवज्जो देना इस और भी, बैलोस हँसी दिखाना तुम,
झूठी मुस्कान से ग़म छुपाने वाला बड़ा मक्कार होता है!

चैन-ओ-अमन हो ज़िन्दगी में, ना रंजिश - ओ -ग़म हो,
दर्द के बदले, दु:ख-ओ-तकलीफ़ देना व्यापार होता है!

तेरे हिस्से का वक़्त तुझे ही गुजारना है ये मुकद्दर है तेरा,
मातम पर मनाए जो जश्न, उस पर धिक्कार होता है!

मसरूफ़ ना होना बुलंदियों की बारिश में कभी 'कुमार',
कि निभाना कभी राजा कभी फकीर का किरदार होता है!

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जो भाषण से ही चल जाए उसे सरकार कहते हैं,
जो बहुमत में भी रोता हो उसे मक्कार कहते हैं...

सभी दागी हों कुर्सी पर उसे धिक्कार कहते हैं...
गरीबी भुखमरी और लूट को आविष्कार कहते हैं...

जो तलवे चाटता हो अब उसे अखबार कहते हैं,
बड़ा खुशहाल है अब मुल्क इश्तेहार कहते हैं...

पकौड़े तलने की शिक्षा को ही उपकार कहते हैं,
स्वतंत्र,पढ़ लिख के क्या होगा इसे व्यापार कहते हैं...

जो विस्मृत कर दे हर वादे उसे व्यवहार कहते हैं,
पहन कर भागते बाबा उसे सलवार कहते हैं....

सिद्धार्थ मिश्र

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15 NOV 2024 AT 16:00

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17 APR 2020 AT 7:45

तू सोचती थी तेरे लिए मर जाऊगा,मुझे घंटा फर्क पड़ता बस अपने ख्यालों को खोया बहुत हैं,
अच्छा हुआ तुम चली गयी,किसी मक्कार के जाने के बाद उस दिन से सोया बहुत हैं|

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कि सब्ज़बाग दिखाने लगे मुझको
बड़े पहुंचे हुए हैं बताने लगे मुझको
जल्दी ही खुल गई पोल हो गई जेल
ऐसा लपेटा कि घूरने लगे मुझको

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27 APR 2020 AT 1:06

चालाक, मक्कार,फ़रेबी बहुत देखें है
लेक़िन तुमसा आज तक नही देखा..

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