एक ख़त उस बेवफा के नाम.......
चलो उसके किस्से सरेयाम करते हैं,
ऐ खत,आज उस बेवफा के नाम करते हैं।
वो कहती मैं तुम्हारे लिए दिनो- वो- रात रोती हूं।
तुम्हारे बिन जी नहीं पाऊंगी मैं तुमसे दिल से प्यार करती हूं।
अरे मैं अच्छी तरह जानता हूं
वो रातों को ना जाने कितना ख्वाब सजाती हैं
वो लड़की हैं न साहब ना जाने कितने को बेवकूफ बनातीं हैं.......-
& Co-author of इस्तिआरा.
एक रोज सड़क पे अचानक उसका दिदार हो गया,
मोहब्बत बहुत था मगर वो शख्स मोहब्बत में खुद्दार होगा,
अरे जो कभी खाता था कसम रख हाथों में हाथ,
आज वही शख्स किसी और का परवरदिगार हो गया।
खैर कभी उसने खाया था कसम उम्र भर साथ नहीं छोड़ेंगे
मर जाएंगे भले ही मगर हीर-रांझे की तरह हाथ नहीं छोड़ेंगे।
अरे कैसे बताऊं कि मोहब्बत में वो कितना खुद्दार हो गई,
जो कभी रोती थी बात करने के लिए आज वही शख्स मुझसे भी समझदार हो गई।-
अगले महीने मेरी बर्बादी हैं,
अरे कैसे बताऊं उस बेवफा की शादी हैं।।
तब शायद उसे भी मेरी याद आयेगी,
रातों को सोकर वो मेरी ख्वाब सजायेगी।।
मांगेगी माफ़ी मुझसे किये हुए हर एक वादें का,
रो रोकर बतायेगी हर एक बात अपने सहजादे का।
तब शायद वो भी अपनी मोहब्बत की सिमा लाघेगी,
अपने किए हुए बेवफाई की मुझसे माफ़ी मागेगी।।
उसके दिए गए जख्मों को कभी साफ नहीं करुंगा,
उस बेवफा को ताउम्र कभी माफ नहीं करूंगा।।
कितना भी मांगे माफी उसे ताउम्र शर्मिन्दा रखूंगा,
मर जाएंगी भले ही, फिर भी उसे अपने हर एक शायरी
में जिन्दा रखूंगा।।
अगले महीने मेरी बर्बादी हैं,
अरे कैसे बताऊं उस बेवफा की शादी हैं।।-
कैसे बताऊं वापस आई मोहब्बत को मैं ठुकरा देता हूं,
उसके जैसी बेवफा को मैं लात मार के भगा देता हूं,
जो पहले किया था अब मेरा दिल वो भूल नहीं करेगा,
मैं शायर हूं ना ये शायर ताउम्र तुझे कभी कबूल नहीं करेगा।।-
हर मंदिर,मस्जिद में तेरे खातिर उस खुदा से फरियाद किया,
मत पूछ पगली कितने रातों को जगकर तुझे याद किया,
खैर,सब छोड़कर किसी गैर की बाहों में तुम अब खो जाना
तुमने मुझे उसके लिए छोड़ा था,जा अब तू उसी के हो जाना।-
ना जाने कितने चूहों के बिलों को खोद के निकली वो,
वो बहुत बुजदिल बेवफ़ा हैं या फिर अपने मां को ........ के निकली वो।-
उसने पूछा कि शायरी का मतलब क्या हैं?
तो मैंने कहा?
देखना तुम यूं ही मोहब्बत की गलियों में
एक रोज़ गुमनाम हो जाओगी,
अगर मतलब बता दिया तो मेरी जान
तुम भरी महफ़िल में बदनाम हो जाओगी।-
उससे कहना कि,ज़रा सोच कर सोचें मुझे,
कि इतना सोचना अच्छा था क्या ?-
मेरी मोहब्बत को बस इतना मक़ाम मिल जाएं,
कमबख्त मैं मर जाऊं,मगर उसका नाम न आएं।-
मेरी मोहब्बत में तू समंदर की लहर बन के आई,
कमबख्त,गई तो सब कुछ साथ लेकर चली गई।-