....भिकारी....
नाहीये त्यांच्याकडे परिस्थितीशी लढण्याची ताकद आणि कष्ट करण्यासाठी अंगात बळ...
म्हणून म्हणतेय येत असतील ते दारी तर द्याना त्यांना आपल्या कष्टातील थोडस फळ...
(Read caption)-
में भिकारी ही बंजाऊ आपके खातिर।
कोई डाले तो सही आपको मेरी झोली में।-
राजकारण पाहिले महाराष्ट्राचे
2019हे वर्ष तर मूर्ख ठरले
पावसाने घात तर केला
पण अहो राजकारणाने तर भिकेला लावले..
एका रात्रीत इथे
राजवट ही गेली
त्याच रात्री राज्यपाल रद्द ही करतो
शपथविधी रात्रीच आटोपतो
पण यांना समाजसेवा करायला
हजारो चौकशी पत्र सादर करावे लागतात..
शेअतकर्याचे दु:ख समजायला
अजुन जन्म ही लागतील
पण त्या खुर्ची साठी फक्त एक "रात्र"..
कस जमतं अस
थोडी पण ईज्जत नाही का शिल्लक
निर्लज्ज अहो इतके कसे
महामूर्खपणाचा इतका चढवीला कसा हा कळस..-
कद़ह लेकर एक भिकारी,पुछ रहा था मुझे
सुकुन मिले तो बता देना, जरुरत है मुझे
( कद़ह = कटोरा )-
मेरी आँखों से गुज़रतीं हैं तुम्हारी ऑंखें
फिर भी क्यों बात न करतीं हैं हमारी आँखें
तेज़ हिरनी-सी हुआ करतीं थीं कहते हैं कभी
तेज़ हैं आज भी पर अब हैं कटारी आँखें
राबता यार से ज़ियादा नहीं,इतना भर है
उसका रुख़ दाता, हमारी हैं भिकारी आँखें-
एक राहचलता भिखारी प्रेम के साथ आशीर्वाद दे सकता ..
और हम जिससे जिजानसे एकतरफा महोब्बत करते, वो प्रेमभंग के साथ मेंटली टॉर्चर कर सकते,
बाकी हिसाब सवालों के सिवाय कुछ भी नही दे सकते,...,
आपका शायर वैभव-
खाना पड़ा था बाहर मेरे मोहल्ले में,
कुछ बर्तन खाली थे, मेरे मोहल्ले में ।।-
गरीबों की बस्ती थी एक,
जहां हर कोई भिखारी था।
कपड़े पहनते फटे पुराने,
जेब में ना पैसा ना रुपया।
चलते थे वह शान से मगर,
जो मिला सारा खा डाला।
नासमझे देश और दुनिया,
ना चिंता ना ही कोई फिकर।
जब मैंने उन्हें नमस्ते कहा,
अपना सब कुछ मुझे डे डाला।
पर बातों ही बातों में,
जब बोल दिया उन्हें भिकारी।
तन मन धन एक हो गई मेरी।-
हाथ फैलाना सही नहीं हैं चंद्र !
लोग भिक मांगना समझते हैं ।।-