जिंदगी एक ख़्वाब   (आरजू़...💞)
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Joined 6 April 2018


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मिठी मिठी चाय से, शितल उजाले में शक्कर मिल गयी
चांद रातभर सोचता रहा, यह बिमारी कब से लग गयी..

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सिपास है उस वक्त के, जिसने हमें जुदा किया
वरना कहां से लाते तनहाई में यादों का समुंदर..

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चाय तो सीर्फ इक बहाना था, तुमसे मिलने का
एक मौका था चाय के साथ, दिलसे खिलने का

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यह कैसा बोझ रखा तुमने मेरे दिल पर

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अगर ना होते ख़्वाब, जिंदगी बेजान होती
ना रहते जज़्बात ना दिल की आरज़ू कोई
उंची गगन में उड़ान भरने के हौंसले नहीं
हर किसी की जिंदगी होती खोई खोई....

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आरज़ूओं का समुंदर छाया है तेरी पलकों के पिछे
खुशियों कि कुर्बानी देकर जी रहीं हों जिंदगी को जैसे

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मासुम आंखों की गुफ्तगू कैसे समझें
रसिले ओठों से ही नज़र नहीं हटती

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तेरी उल्फ़त को हम याद रखेंगे
रुखसत में सिलसिला आबाद रखेंगे

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इन हसीन वादियों में, इश्क़ का ताज पहनाकर
कहां गुम हो गये हो तुम, हमसे दिल लगाकर

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मज़लूम का शिकार हुआ हैं जो सैलानी
इंसानियत नहीं भुलेगी मासुमों की कुर्बानी

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