ताबीज़ या धागा
बताओ किसे बाँधने से
मिलेगा भगवान?
चादर या मुकूट
क्या चढ़ाओगे
चाहिए उसे क्या सामान?
मूर्ति या मज़ार
कहो करें हम
किसका सम्मान?
भागते हो ख़ुदा पाने को
पीछे छूट गया इंसान।-
जब समाज में नवरात्रि की उपासना चल रही हो, कवि निराला की लिखी रचना 'प्रियतम' और अधिक प्रासंगिक हो जाती है, जिसमें नारद, भगवान विष्णु से उनके सबसे प्रिय व्यक्ति का नाम पूछते हैं, उत्तर जानकर विस्मित हो जाते हैं, फ़िर आगे क्या होता है!
आइए, अनुशीर्षक में स्वयँ ही पढ़ते हैं
-
एक बात कहूँ
ग़लत मत समझना
अपनी माँ को कभी भी
ईश्वर की तरह मत पूजना,
भगवान को इस धरती पर
बस भगवान बनकर रहना है
उन्हें तो सिर्फ़ मंदिर में
मूर्ति बनकर बैठना है,
पर माँ किसी की बेटी, बहन,
सहेली, पत्नी और कर्मचारी भी है,
याद करो माँ के अंदर की माँ
बाक़ी किरदारों से कभी हारी भी है,
ऐसा न हो कि माँ की
कोई और भूमिका
जब माँ होने से टकरा जाए
बच्चा नासमझी में माँ को
दोषी ठहरा जाए,
अगर करते हो सचमुच में
अपनी माँ से प्यार
अपनाकर दिखाओ उसके
बाक़ी सारे किरदार।-
घर में आए हर एक अतिथि भगवान के स्वरूप नहीं होते है
कभी कभी राक्षस भी भगवान के भेष में आते है-
कोरोना महामारी के संकट पर !
सब सुरक्षित रहेंगे अपने घर पर !!
पुलिस हमारी रक्षा करके देती है संदेश !
घर पे रहो सुरक्षित वरना हो जाएगा केस !!
बीमारी से ग्रसित मरीजों की बचाते हैं ये जान !
इसीलिए कहलाते चिकित्सक धरती के भगवान !!
प्रशासन का पूर्ण रूप से करें सभी सहयोग !
कोई भी बाहर न निकलो भागेगा ये रोग !!
सामाजिक दूरी का हम सब रखें मिलकर ध्यान !
वरना कोरोना से कोई न बच पाएगा इंसान !!
जीतेगा ये भारत मेरा फिर से खिलेंगे ग़ुलाब !
महामारी दूर भगाने में हम होंगे कामयाब !!-
उस दर्द की तुम दवा बनो जिस दर्द को किसी ने ना सराहा हो
उस जन जीवन का तुम मदद करो जिसका कोई ना सहारा हो
उस मंजिल का तुम पथ राही बनो जिस तक कोई ना पहुँच पाया हो
उस अद्भुत शक्ति का तुम खोज करो जिस पर भगवान ने अपनी जगह बनाया हो-
हर सपना वो पूरा करते, जलाकर अपने अरमानों की चिता,
करने पूरी बच्चों की ख़्वाईश, हर सुबह निकल पड़ता है पिता।
माना नौ महीने गर्भ में रखकर, पीड़ा सहती है माता,
पर नौ महीने "अपने दिमाग़ में" बच्चों का भविष्य ढोता है पिता।
बचपन में लड़खड़ाते कदमों को, हाथ पकड़ के चलना सिखाते,
जब जब छोटे कदम चलते तो ख़ुशी से फ़ूले नहीं समाते।
डाँटने के पश्चात भी, आता है उनको प्यार जताना,
पर विश्व का सबसे कठिन काम है, अपने पिता को गले लगाना।
देखा है एक विशाल हृदय, एक टुकड़ा जुदा करते हुए,
निकलते हैं उनके भी आँसू, बेटी को विदा करते हुए।
घरवालों की फ़रमाइश पर, सब कुछ करना स्वीकार है,
ये भी बिल्कुल सत्य है, माँ अगर संसार है तो पिता पालनहार है।-
ना बनाओ मुझे भगवान्
मैं शैतान ही ठीक हूं |
क्या करोगे जान कर उसका मेरा रिश्ता ,
हूं मैं इंसान
मैं इंसान ही ठीक हूं |-
भगवानो से एक ही सवाल पुछे है बच्चा यतीम
ये कमबख़्त भूख रोज रोज क्यों लगती है मुझे!-