रास्ता बोझिल है मंज़िल भी ओझल है
नहीं! इस सफ़र की तो बात नहीं हुई थी
- साकेत गर्ग 'सागा'
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🌺 मैं हूं ना 🌺
जैसे अंधेरों से निकलकर एक नई भोर मुस्कराती है,
जैसेउदासी के बादलों से छिटककर
उम्मीद की किरण जगमगाती है,
जैसे पतझड़ की तनहाइयों से उभरकर
बहार खिलखिलाती है ,
जैसे दुखों की भीड़ से भटककर
एक नन्ही कली सुख की जीवन महकाती है ,
वैसे ही इस बोझिल थके मन को
तुम्हारी " मैं हूँ ना "वाली मुस्कराहट
आँखों से छलककर मन की गहराइयों में उतर जाती है ,
और न जाने कैसे चुपके से सहलाकर ,
मेरी वेदना को पिघला जाती है |
........निशि..🍁🍁
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मेरी वक़्त से बोझिल पलकों में,
फिर तेरे ख्वाब सजने वाले है।।
सोचा था आज जल्दी सोयेंगे,
लो फिर तीन बजने वाले है।-
कुछ "बोझ"
हमें इतने
"प्रिय" होते हैं कि
उनके तले
"दबकर",
हमको
"सुकून" मिलता है।-
रंग बिरंगी..'तितलियां'
प्रेम करती है....
'फूलों' से
उड़ती है ....
स्वछंद 'हवा' में
मन मोह लेती है
है ना?
पकड़ा था ना
तुमने भी...उस दिन
एक 'तितली' को
खुद को बचाने की
कश्मकश में उसने
सबसे खूबसूरत
चीज ही त्याग दी
"पंख"
ऐसी ही होती
'लड़कियां'
जब दबोच ली जाती है
'हवस' भरी 'नजरों' से
तो 'त्याग' देती है
अपने ह्रदय से
'प्रेम' 'विश्वास'
कभी-कभी तो
बोझिल करती
"सांसे" भी !-
दुनिया के बोझों में से एक है जिम्मेदारियों और किसी के उम्मीदों के बोझों के ले चलना ।।
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हकीकत से दूर ...
कब तक भगोगे,कब तक पीछा छुड़ाओगे
एक दिन सच तो सामने आ ही जाता है
जितनी जल्दी स्वीकार कर लो उतना ही अच्छा है
सत्य कष्टदायी होता है,पर सामने आ जाने पर
बोझिल मन हल्का हो जाता है-
सब कुछ धुमिल - धुमिल सा क्यों है ?
मौसम आज संगदिल सा क्यों हैं ?
हवाएं थमी -थमी सी क्यों हैं ?
फिजाओं में एक नमी सी क्यों हैं ?
पत्ते क्यों गुम सूम से हैं ?
खग विहग चुप-चुप से क्यों हैं ?
जरूर किसी अपने ने शिद्दत से
याद किया है हमें ....
वर्ना यह दिल बोझिल - बोझिल सा क्यों है !
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