नटखट नंदन बृज बिहारी
छुप छुप करे मनमानी
कभी बंसी बजाए कभी जिया चुराए
गोपियों की जो मटकी फोड़ आए
गोपियों संग जो रास रचाए
राधा के संग प्रीत लगाए
घूम घूम जो हर्ष जगाए
किस्से भला “मन-मोहन" के
हम क्या क्या इस जग को सुनाएं......
“ राधे ❤️ कृष्ण "-
ब्रज की लीला है न्यारी
गोकुल नगरी है बहुत प्यारी
महक मिट्टी की चंदन हैं जिसकी
मिठास नदियों का हैं जैसे माखन मिश्री
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दिन बीते, महीने बीते
बीतै को है एक साल
फ़िर भी ओहेन याद ना आई
सोंचत हो गए बुरा हाल।
बातैं भूलिन्ह, यादेँ भूलिन्ह
भुलन्ह गईं देखो सारे वादन आज
आखियाँ रोईं, सारी रातियाँ रोईं
दिल भी रोया,
फिरहिं हाल ना पुछिन सकल समाज।
दोस्ती किंहो, साथ दीन्हों
छण भर रहिंहो पास
मोहन जांहि कौन सों दुःख दीन्हों
की अब ना भटकें मोहें पास।
की अब ना भटकें मोहें पास
जानहे क्यों नाहिं आवत अब हम रास
मोहें मोहन की हैं आस
रस्ता जोहत मीत के
अब सूख़न को हैं
मोर् आखियाँ की आँस।-
मेरे प्रभु, साँवरे सरकार, मेरे कान्हा..
कुछ ऐसा करो मेरे गोपाल की
मोहे बना दो बृज कण प्यारे सरकार
बस मन मे इतनी सी मेरी आस रहे..
न चाहिए मुझ को कोई अमृत प्यारे माधव,
मन में सदा प्यास रहे मोहे आपके दर्श की,
रहे मोहे आस यमुना के तीर की मोहन,
मन मे मोहे रहे जल की प्यास यमुना नीर की...
साँसे लगे होने मंद, लगे धड़कन जब छूटने,
और टूटन लगै जब माला साँसो की साँवरे..
तब मन में हो वास आपका, ध्यान धरु चरणों का,
साँवरे सरकार बस दीजो मोहे दर्शन प्यारे आपका,
मोहन सरकार मेरो पूर्ण के लाज राखजो विश्वास..
जय श्री हरे कृष्ण, हरे कृष्ण.. श्री हरे हरे राधे राधे..
जय श्री राधेरमण, जय श्री राधेकृषणा..🙏🏼🌺🐦🌺🙏🏼-
राजवाड़े खोले हैं लोगों ने शहर में
नाम से तुम्हारे और हमारे
दिन काट रहे ज़िन्दगी के मुफलिसी में
झेल रहे खुशियों के खसारे-
माधव..
श्रीकमलपद चरण सिवरू श्याममनोहर श्यामाजू प्यारी लाडली,
सुख पाऊँ हिय रज पाऊँ श्रीचरनन श्यामाजू श्याम कुंजबिहारी,
हे गोविंद..
मोहे ऐसो चित्तधरो मोहे करो कृपा कृपादात्री जो पाऊँ बृज रज,
रज सुधा रस चंदन वास पाऊँ, रम्यो रहूँ बृज रस रास, रज कण कण झूम झूम बस श्रीराधे राधे श्रीश्यामसुंदर गुण गाऊँ, दो श्रीकमलपद चरनन छाया बासो श्रीकृष्ण कन्हाई साँवरे सरकार..✍🏼🐦-
माधव..
बता दो किस बिद आऊँ आपके श्रीचरणों की शरण मे साँवरे,
कैसे आऊँ और बस जाऊँ आपकी नगरिया बृज में कुंजबिहरी,
हे गोविंद..
ह्र्दय भाव हुए हैं प्रबल, चल मन अब वृन्दावनबिहारी बृज चल,
आपको दुनिया ऐसे ही तो नही कहती कृपालु, कोई ऐसे ही तो बारंबार हाज़िरी देता नहीं है सरकार की अदालत में.. आपसा कोई मोटा न्यायाधीश न्यायमूर्ति भी तो नही साँवरे सरकार..✍🏼🐦-
हरषातु चली , बलखातु चली
माथे पे बिंदिया चमकातु चली
नैनन में कजरा सालो चली
शीश लाल चुनरिया डालो चली
नाक नथनिया डोलाये चली
दधि बेचन बृज की नार चली
पाजेब छनकात अलबैलो चली ।।
चलैं फरिया अपनोँ सम्हारि चली
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बृज रज की महिमा अपार.. बृज रस की है खान..
बृज रज माथे पर चढ़े.. बृज है स्वर्ग समान..-