इस ना-मुक़म्मल इश्क़ की दास्तां बस इतनी सी है दोस्तों....
इश्क़-ए-बेवफ़ाई में वो निखरते गए हम थे जो बिख़रते गए-
किसी दिन
शोधकर्ताओं को
खुदाई में मिलेंगे
रिश्तों के
अवशेष ,
साथ ही
स्नेह ,विश्वास, समर्पण
चरित्र
और नैतिक मूल्यों
के कंकाल...
तब किसी संग्रहालय में रखे
जाएंगे शोभा बढाने हेतु ।
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धीरे- धीरे बातों में अपनापन खत्म होने लगा है
लगता है रिश्ता अब बूढ़ा होने लगा है-
मन भरने का तूने
मुझ पर इल्जाम लगाया था
तुम वो नहीं हो सकते
जो कभी मेरे ख़्वाबों में आया था-
"इमोजी का जमाना_है....."
इमोजी का जमाना है
बात नहीं करने का
ये तो अच्छा बहाना है
बनावट उतर आयी है
जिंदगी में भी, इसलिए तो
बिना बात के इमोजी से
इमोजी की तरह मुस्कुराना है
दर्द न भी हो, किसी के लिए
तो झूटे आसूं भी, बहाना है
क्यूंकि, इमोजी का जमाना है
दिल का सच छुपाने का
ये तो अच्छा बहाना है
मशीनें बात नहीं करती
फायदे हो ऐसी काम करते हैं
हम भी अब मशीन बन गये
बस फायदे हो तो बात करते हैं
अहमियत रिश्तों की भूल बैठे
सबको अब नजरअंदाज करते हैं
रिश्ते भी अब मशीनें हुई हैं
बात बात में बिगड़ जाते हैं
खुशियों के दो पल में 'अपने'
गम हो तो 'बेगाने' हो जाते हैं
.....शेष अनुशीर्षक में।
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अब वफ़ा करो या दगा
बातें करो या block
कसमें खाओ या जहर
आसान शब्दो में
I DON'T CARE
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ज़िन्दगी के सफर में
एक अजीब कहानी रची है
कल जो मेरी हमसफ़र थी
आज वो किसी और की बनी है-
किसी रिश्ते में कमी होना उस रिश्ते को कमज़ोर कर देता है
कई रिश्ते वक़्त के साथ कमियों को भर लेते हैं और कुछ में दरारें आ जाती है-
हो जाते संबंध में , कभी - कभी मतभेद |
किंतु हुआ मनभेद तो ,नहीं बचाता खेद |
नहीं बचाता खेद , छेद उर पट में होता |
रिश्ता कोने बैठ , फूटकर प्रतिपल रोता |
पूछ रहा "अनभिज्ञ",दुखद क्षण क्यों हैं आते |
अपने सारे लोग ,पराये क्यों हो जाते ||-