आज नहीं कल का सहरा लेना पड़ रहा है
अपने कर्जदारों से छल का सहरा लेना पड़ रहा है-
गैरों का अपनाया हुआ हूँ
नज़्मों के इस शहर में
चन्द अल्फ़ाज़ मैं अपने ... read more
हर रोज खुद में खोता हूँ मैं
हर सुबह अपने भविष्य से
हर दिन अपने वर्तमान से
तो हर रात अपने अतीत से
रुबरु होता हूँ मैं-
तू फिर जेहन में आया , फिर दिल के जख्म हरे हुए
फिर खो कर तेरे ख्याल में, फिर इस जहां से हम परे हुए-
एक बार तो प्यार की बरसात मुझ पर करके देखना
मैं अलीगढ़ सा न डूब जाऊं तो मुझसे कह देना-
मोहब्बत का रिश्ता मैंने निभाया है
इसीलिए तो दर्द और तड़प
ये सब मेरे हिस्से में आया है-
जब फर्क न हो तुम्हें मेरे हंसने या रोने से
जब फर्क ही न हो तुम्हें मेरे होने या न होने से
तुम्हारी तरह बदल जाना चाहिए मुझे
बिना किसी शोर के तुमसे दूर अब जाना चाहिए मुझे-
आज बिखरा हूँ कल फिर संवर जाऊंगा
उम्मीद है मैं कल फिर मुस्कुराऊंगा-
अब क्या गम , क्या आंसू
और क्या फरियाद
खत्म रिश्ता
अब मैं भी आज़ाद ,
तू भी आज़ाद !-
मेरी तड़प का अंदाज़ा उसे अगर होता
तो शायद ही मेरा हमसफ़र इतना सितमगर होता-