फिरका परस्ती के आलम में जब-जब इंसानियत दुआ लेती है।
फिर कहीं बंदरों की लड़ाई में बिल्ली फायदा उठा लेती है।।-
सब मन्दिर,मस्जिद,गिरिजाघर में सजदे किया करते हैं
उन सब इमारतों के खुदा मेरी म... read more
हुक्मरानों ने ही चल दी चाल सियासत में
गुल- ए- गुलशन होंगे बदहाल सियासत में।
अब किस क़दर उठाओगे आवाज अपनी
कुचले जाएंगे जो सब सवाल सियासत में।
बगैर तफ्तीश के जुर्म मुकर्रर हो रहें हैं
होंगे सच्चे झूठे कई बवाल सियासत में।
उसूल सब अपने दफ़न करके बना बाग़बान
ज़मीर वालों की नहीं गलती दाल सियासत में।
बनके महबूब वो धीरे से आया है 'दीप'
बिछाएगा नफरतों के जाल सियासत में।-
ये गिरता हुआ पत्ता
सब अपने छोड़ के गिरा था,
बस पवन संग एक नई हिलोर पाने को!
उड़ रहा है,
मानो नयी जिंदगी पाई हो।
बस वो भी यही चाहता है,
गिरना है, बिखरना है
फिर उड़ना है बहती पवन संग
उस पत्ते की तरह।
बरसों बीत गए इसे महसूस किए।
हर वक्त कोई साथ होता है,
किन्तु 'मैं' होती ही नहीं।
अंदर खालीपन और
बाहर हंसने के स्वांग से
अब उकता गया मनवा ,
पर इसे कोई नहीं चाहिए,
सांत्वना की प्यास भी नहीं है।
मन स्वयं की तलाश में हैं
ये भी उड़ान चाहता है,
बिल्कुल उस पत्ते की तरह,
ना बंदिशें चाहिए ना हुक्म कोई।
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खूबसूरत इन पारिजातों की कहाँ गलती है ग़ालिब
ये तो इन कमबख्त निगाहों का माजरा सारा...!-
पापा यानी जिम्मेदारियों का दूसरा नाम,
सबकी हर छोटी-बड़ी चाहतों में
उनकी खुद की जरूरतें खो जाती है...
अब छोटी सी मैं,
"पापा" बनने लगी हूँ...-
सुर्य कभी हमसे पूछकर
या
हमारे लिए उदय-अस्त नहीं होता ।
वो अपना काम करता है।
तब भी हम उसे अर्घ्य करते हैं
अर्घ्य सुर्य को भगवान नहीं बनाता
अपितु किसी को धन्यवाद देना,
हमें इंसान जरूर बनाता है।-