अरुण दीक्षित पीलीभीत   (अरुण दीक्षित"अनभिज्ञ")
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कवि एवं साहित्यकार
Joined 5 September 2018


कवि एवं साहित्यकार
Joined 5 September 2018

मुझे जिनसे मुहब्बत है, उन्हें मुझसे है नफरत क्यों ।
हकीकत जानते फिर भी,मुहब्बत की लगी लत क्यों ।
उन्हें आदत तिज़ारत की चलो मैं मानता फिर भी-
मुहब्बत तो मुहब्बत है, मुहब्बत में सियासत क्यों ।।

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गुलाबों ने खुशबू कहाँ बेच दी ।
यहाँ बेच दी या वहाँ बेच दी ।
कई आज पतझड़ खड़े सामने-
क्यों' माली ने सारी फिजाँ बेच दी ।।

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गुलाबों ने खुशबू कहाँ बेच दी ।
यहाँ बेच दी या वहाँ बेच दी ।
कई आज पतझड़ खड़े सामने-
क्यों' माली ने सारी फिजाँ बेच दी ।।

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गिरने को इस जगत में,क्या-क्या गिरा न मित्र |
किन्तु गुणित अनुपात में, गिरता दिखे चरित्र ||

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मुलाकात ऐसी हुई चाँदनी में |
सितारों ने' धरती छुई चाँदनी में |
किया चाँद ने जब इशारा नदी को-
नदी खो गई जादुई चाँदनी में ||

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किसको बताए और किसको सुनाए हम,
कैसे - कैसे मेरी मजबूर हुई कविता |
दिल में समा के कल सांसो में जो बसती थी,
आज वही गम का सुरूर हुई कविता |
जीवन में आए झंझाबातों से थी लड़ी खूब,
अंत में वो हार थक चूर हुई कविता |
मैंने अपने को बस थोड़ा सा ही दूर किया,
किंतु मुझसे तो कोसों दूर हुई कविता ||

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मुझको मेरी कुटिया प्यारी,तुझको तेरे महल मुबारक
तेरे इन ऊँचे महलों को मैंने नमन नहीं सीखा !!

-----------------✍️अज्ञात

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घनाक्षरी
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विश्व रम्य वाटिका में,खिलते हजार पुष्प,
सब में न एक जैसी, सुरभि समाई है |
कोई मन मोहता तो,कोई मुँह मोड़ता है,
कोई हर लेता पीर, पल में पराई है |
कोई सूर्य देखता तो ,कोई चंद्र देखता है
कोई शूल ओट ले - के ,बनता कसाई है |
किसी की जड़ों में पंक, किसी की जड़ों में डंक,
किसी के जड़ों में,स्वर्ण माटी की कलाई है ||

✍️अरुण दीक्षित"अनभिज्ञ"

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ऐंठकर कल मान ने था रोककर मुझसे कहा
ढूंढ़ते हो क्यों मुझे तुम दर्प की दूकान में |
अब समय वैसा नहीं जो मुफ्त में सबको मिलूं
हो चुका मँहगा बहुत हूँ,ढूंढ़ मत इंसान में ||

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NPS-NEW PENSION SCHEME
(थोपी गई)
OPS-OLD PENSION SCHEME
(चाहिए)

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