घड़ी से चेहरा छुपाकर, किया काम नेक
चेहरे पर बारह बजे थे, और घड़ी में एक-
लाओ रे कोई घासलेट
लार्वा पनप रहे गड्डो मे
हाँफता खाँसता तपता
बुजुर्ग बोला, धँसे मुड्डों मे
ताऊ, सड़के हंसती तो
डिम्पल पडते खड्डो मे
हम आंग्ल इण्डियन हैं
न पडो, हमारे रगड़ो मे
बजट हैं डेंगू जीका का
लार्वा पनप रहे हैं गड्डो मे
कितने आए , चले गए
कोई न गिरा इन गड्डो मे
भारत लोचदार, पता हैं
मिट्टी माधो पलते खड्डो मे
फिरंगियों को जबरन भेजा
नतीजा, बसे हर छोटे बड़ो मे
मच्छर कुछ नहीं कर सकता
सिवा, एनाफिलिज झगड़ो मे
हजरत आप चिन्ता न करे
फूट डालो राज करो झुण्डों मे
...ब्रजेश
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ओ मेरे
बारह महीनों को एक रंग में रंगने वाले
मैं अपने कैनवास तुम्हारे लिए प्रेम लिखती हूँ!
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बारह -बारह चौबीस
तीन-पांच करते-करते बस,
नौ-दो ग्यारह हुआ समय
उल्टा -पुल्टा जोड़-तोड़ कर,
मिलती नहीं जीवन की लय,,
रहना ना मन मुनाफे के फेर में,
मिली जो एक हार भी,काफी है
ढाई अक्षर प्रेम के भले हों आधे,
इसमें सौ गलतियों की माफी है,,,
एक और एक मिलते हैं तो दो हो,
पढ़ना मत तीन ना तेरह-तीस में
गुणा -भाग हो-होकर दिन कहते,
देखो बदल गए बारह -बारह, चौबीस में।
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दोस्ती निभाने की बात हुई थी
साथ चलने की बात हुई थी
लड़ने झगड़ने की बात हुई थी
हँसने मुस्कुराने की बात हुई थी
मेरी बेवकुफियों में साथ देने की बात हुई थी
तेरी समझदारी की बात हुई थी
ये भी एक पल था जब
मेरी ख्वाशियों को पूरा करने की बात हुई थी
जहाँ तेरे साथ चलने की बात हुई थी
हरकतें थी पागलों जैसी पर
दोनों ने दोस्ती निभाने की बात की थी
दोस्ती तेरे मेरे बीच नहीं वक़्त के बीच हुई थी
जो एक नहीं दो नहीं बल्कि
बारह सालों के बीच हुई थी|
(कुछ पुरानी यादों की तस्वीरें जो अब वक़्त के साथ नए पन्नो में तब्दील हो गयी हैं)
निशब्द-
बारह मन का बोझ लिए
सब किया धरा जाने किसका है,
मुझ पर ही उंगली उठती है
जाकर कहां कह दूं मन की अपने,
यह आंख-मिचौली अब खलती है,,
सारे नियम कायदे हैं मेरे ही हिस्से,
मुझसे ही फिर बनते हैं किस्से
पल-पल रूप बदलना पड़ता है,
मेरी एक ना चलती है,,,,
सोलह श्रृंगार करे आसमान,
मेरी बिना कोई खोज लिए
पंद्रह दिनों तक ताक में रहूं मैं,
मन में बारह मन का बोझ लिए।
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रात के बारह बज रहे थे,
हुई मुलाकात डेंगू से।
उलझाकर बातों में ,
बोल बैठा मुझसे।
जो भी कविता लिखते हो तुम,
प्रियतमा के आलिंगन का,
जिक्र जरूर करते हो।
मैं भी करूँगा अब आलिंगन,
थोड़ी होगी परेशानी।
पर मिलेगा तुमको नया तजुर्बा।
श्वासों की गति बढ़ जाएगी,
जब गुजरेगी दिल के द्वार से।
कमर से लेकर पैरों तक,
होगी थोड़ी चुनचुनाहट।
पर तुम हिम्मत न हारना,
मिलकर हम और तुम,
एक दूजे से जुड़े रहेंगे।
कभी तुम मुस्कुराओगे,
कभी नयनों में भरोगे अश्क।
तुम तो बतलाओगे भी नहीं,
अपना दुखड़ा अपनो से।
पर एक पल ऐसा आएगा,
जब मैं भी होकर लाचार,
तुम्हे छोड़ के चला जाऊँगा।
@RomySingh ✍️❤️-
बंद घड़ी दस-दस दुकानों की
विश्व युद्ध की शांति दर्शाती हैं
लेकिन इंसान अगर बैठा हो तो
चेहरे पर बारह ही बजे होते हैं-