Romy Singh   (रोमी के दिल के अल्फाज़❤️)
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Joined 18 October 2021


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Joined 18 October 2021
26 APR AT 22:42

वादियों के आँगन में,
बिखरे ख़्वाबों का मंज़र देखा।
पहलगाम के आँगन में,
नयनों ने कत्ल देखा।
धरा का आँचल,
खून से भीग गया।
दिल में ख़ौफ़,
अपनो की मौत देखा।
सजे थे जो दिल में ख़्वाब,
टूट कर बिखर गए।
मोहब्बत के आँचल में,
लाशों का ढेर देखा।
गए थे वादियों में,
इश्क़ के फूल खिलाने।
पर आतंक की लपटों ने,
जिगर को छीन लिया।
नफ़रत की चादर ,
फैल गई आसमां में।
जल उठा फिर से,
आतंकी दिया पहलगाम में।
अश्कों में वादिया,
लाल होने लगी।
@RomySingh ✍️❤️

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25 APR AT 13:01

With the primary purpose of sowing division and
self -promotion,
a network of prejudice has become.
The goal is to push the country
and its inhabitants into anarchy
and pursue the interests of the members
and their families.
This network is spreading quickly,
and, if it is uncontrolled,
it will make the country hollow in the coming days.
If we do not wake up now,
this organization will slave every inhabitant,
use mental tape and steer with an iron fittings.
@RomySingh ✍️❤️

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24 APR AT 18:53

हिंद जन की प्यारी आँखें,
देखो इस संदेश को।
आर बी आई कह रहा है,
नहीं होता डिजिटल आरेस्ट।
कानून की डायरी में,
डिजिटल आरेस्ट का उल्लेख नहीं।
डर की पगड़ी पहन के,
कैद न होना कमरे में।
जब कोई तुमको मूर्ख बनाए,
तुम भी उसको मूर्ख बनाना।
कॉल करके 1930 पर,
पोल खोलना डिजिटल आरेस्ट का।
ख़ुद होकर जागरूक तुम,
औरों को भी करना तुम।
आर बी आई के इस संदेश को,
जन–जन तक पहुंचाना तुम ।
@RomySingh ✍️❤️©®

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22 APR AT 21:09

नयनों से कहो तुम,
ज़मी से प्यार कर ले।
जो दरख़्त दिख रही,
वो भर जाएगी।
आसमां में चाँद सूरज,
पवन संग गुनगुनाएंगे।
सज़ा दो धरा को अब,
दिल के जज़्बात बोलेंगे।
सांसे जो चल रही है,
बदल जाएंगी धुएं में।
बचा लो इस धरा को,
धड़कने पुकारेगी तुम्हें।
चलो प्रकृति की वादियों में,
फिर से जीने बचपन को।
झूम कर पत्तियों संग,
आलिंगन में खो जाएं।
चलो एक पेड़ लगाए,
चलो एक पेड़ लगाए।
RomySingh ✍️❤️©®
#earthday
#🌍

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21 APR AT 14:13

Contempt is
a medicine
that reshapes
one's fundamental nature.
@RomySingh ✍️❤️

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19 APR AT 21:01

चल कर चाले किस्मत मेरी,
मुझसे छुपाने लगी है।
खुद से बताती है मुझको,
राहों पे चलना है कैसे।
देकर सज़ा मुझको मेरी ही किस्मत,
दिखाती है आईना भले बुरे का।
मुझको पता है उसकी ये चाले,
फिर भी मैं चलता ही रहता हूँ।
हँसता भी हूँ रोता भी हूँ,
किस्मत की राहों के आँगन में।
गिरकर उठकर ढूंढता हूँ,
फिर भी ख़ुद से मिलता नहीं।
देख मेरी इस हालत को,
नृत्य भाव से हँसती है किस्मत।
@RomySingh ✍️❤️©®

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15 APR AT 1:22

हमनवा के इंतज़ार में ,
गुमसुम सा बैठा रहा।
खोकर उसकी यादों में,
तन्हा दिल से कहता रहा।
होगी जब वो पास मेरे,
कर आलिंगन दिल से,
जुल्फ़ों में उसके खो जाऊँगा।
कर इशारा नयनों से,
दिल के आँगन में बुलाऊंगा।
बाहों में बाहें डालकर,
दिल की कविता सुनाऊंगा।
@RomySingh ✍️❤️©®

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12 APR AT 23:06

A teacher breaks the garland
of discrimination and adorns
the garland of knowledge.
However, the incident in
Tamil Nadu suggests that
the principal's birth might
not have been from a
mother's womb.
That foolish principal seems
to be unaware of the menstrual cycle.
Perhaps he/she forgot that
if his/her mother hadn't
had periods, he/she wouldn't
be in this world. If teachers start
accepting mental slavery,
what will happen to this earth?
@RomySingh ✍️❤️

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11 APR AT 21:27

दिल्ली के हर आँगन में,
हो रही छुटपुट बारिश।
हवाएं तीव्र अरमान लिए,
बूंदों को रिझा रही है।
तापमान घटने लगा है,
काली घटा की चादर से।
धूल धक्कड़ राखों संग,
हवाओं में घुलने लगे है।
रोमी का चित्त होकर आनंदित,
चादर संग लिपट गया है।
दिल्ली के हर आँगन में,
हो रही छुटपुट बारिश।
@RomySingh ✍️❤️

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6 APR AT 19:50

मै भी जलाने लगा हूँ,
मर्यादा का एक दीप।
प्रेम का आँगन मेरा,
उज्ज्वल होने लगा है।
धीरज का मुकुट अब,
दिल में दिखने लगा है।
धर्म बनके कर्तव्य,
मुझे चलाने लगा है।
झूठ फरेब अब ,
मुझ पर मुस्कुराते है।
राम की निष्ठा लगा कर गले,
मुझको निर्मल बनाने लगी है।
त्याग की आभा मुस्कुराकर,
स्वार्थ के आँगन को ढकने लगी है।
राम की झलक नयनों को अब,
हर एक आँगन में दिखने लगी है।
संस्कार बुलाकर मुझको,
राम रस का पान कराते।
मै भी होकर विनम्र अब,
राम प्रीति के संग विचरता।
जलने लगा है दीप अब,
मेरे दिल के आँगन में।

@RomySingh ✍️❤️

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