नज़ाकत उफ़्फ़
मोहब्बत में रुसवाई रही
मासूमियत उफ़्फ़
महबूब की बेवफाई रही
क़यामत उफ़्फ़
जिंदगी में बस सिर्फ
तन्हाई ही तन्हाई रही।
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उफ़्फ़ फरवरी का महीना
तेरे प्यार के ग्यारह महीने कम
और पूरे साल का एक महीना
कभी कोई दिन तो कभी कोई
पर इन दिनों को तुमने कभी
सच्चे दिल से संभाला है
क्यों तुम रोज जता कर हमें
फिर वही कमज़ोर किनारे पर
यूहीं छोड़ डाला है
तेरे वादे झूठे
तेरी कसमें झूठी
एक रोज़ सब दफ़न हो जाएंगी
उधर मेरी यादें
इधर तेरी यादें।
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ख़ुद को उसूलों में जला कर
न लफ़्ज़ों से कोई बात पूरी
और ना खुद की रहमत की कोई बात हुई।-
कहां जायँगे हम इस जिंदगी से भाग कर
रहना तो है इसी जिंदगी में तेरे साथ
तेरी दी हुई यादों के साथ
उन लम्हों को जो जाते वक्त भी
तुमने मुझसे छीन लिए थे
आज ऐसे मोड़ पर खड़े हैं
जहां से तुम दिखाई तो देते हो
पर उस तरह जैसे
किसी मुसाफ़िर को
समुद्र का किनारा दिखता है
या ये कहें कि
जंगल में चलते हुए राहगीर को
जिसे दूर कहीं रोशनी दिखाई देती है
पर वह उस तक पहुंच नहीं पाता है
बस दूर से देखता रहता है।
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समय का शुरुआती आगाज़ है
दिन महीना और साल है
यही सोच कर सब जीते हैं
आज नही तो कल का हाल है
किसी को किसी के लिए फुरसत नही है
जो लफ़्ज़ों में बयां हो जाए
ना वो आज दिन है
और ना आज वो रात है।-
बहुत यादें हैं तेरी मेरी जो रह रह कर आयेंगी
बस कुछ अधूरी हो कर आयेंगी
और कुछ पूरी हो कर।
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अमूमन आज फिर सब दोहराया गया।
पर वो सब सुनने को शक़्स ना रहा।
पुरानी बातें दोराही गयी।
हर रोज़ हर लफ्ज़ में बातें बताई गई।
पर वो सब कहने को शक़्स ना रहा।
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