तू दरिया,मैं नदिया
है अनंत तू,जब भी देखा है,
दिखता ना कोई छोर है
शोर तेरी लहरों का है मुझमें,
मौन हुआ मेरा हर पोर है,,,,
मैं चलती रही,ठहरी नहीं,
कब गुम हुई तेरे साथ कहीं
तेरे भंवर में उलझी सांसें यहीं,
मुड़कर देखा तो ",मैं" रही नहीं,,,
बस में नहीं कि बस में कर लें,
खोल दिया मन का हर ज़रिया
बोल -बोल कर अब मन माना,
ज़िंदगी तू दरिया,मैं नदिया।
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