shubhra banerjee  
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Joined 22 March 2022


Joined 22 March 2022
15 HOURS AGO


पल भर में हो जाते हो ओझल,
तुम भी हो क्या सावन के बादल
उमड़-घुमड़,आते हो जहां से,
लाओ भी कभी संदेसा वहां से,,,,
छन -छन कर गिरती हैं बूंदें,
छिपाए कब तक पलकों को मूंदें
सात समंदर पार तक तुम जाते,
दूर गगन में मन को भटकाते,,,,
यह बैर भोर से अच्छी नहीं है,
कैसे कह दें, तुम्हें अतरंगी अपने
अब लौट भी जा अपनी दुनिया में,
मत भरम में रख,ओ! सतरंगी सपने।



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19 JUN AT 19:33

वो बात नहीं होती
ऐसा भी नहीं कि अनबन है,
हां उलझा हुआ यह मन है
लहज़े में वही अकड़ है जबरन,
रिश्ते में ज़रा सी जकड़न है
हम भी पहल नहीं करते अब,
देख रहें हैं बदलना चुपचाप
तानों का क्या है,आज हैं बस,
कल खत्म हो जाएंगे अपने आप,,
चंद सवाल हमारें हैं रोज़ के,
उनके ही तंग मिलतें हैं ज़वाब
ऐसा भी नहीं कि, बात नहीं होती,
हां पहले सी, वो बात नहीं होती

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18 JUN AT 23:05

वही मैं और वही तू
बदली है चाल बस बदली ने,
पगली हवा की नई उड़न छू
दिन जरा सा स्याह हो रहा,
रात को बूंदें जलती धू-धू,,,,
खुली रही पंखुड़ियां धीरे-धीरे,
बस चुप मैं देखूं,कुछ ना बोले तू
सजने लगे अरमानों के मेले,
रंग मेरा भी ले गई तेरी खुशबू,,,
मौसम के बदलते कर लेतें हैं किनारा,
सावन की बातों में ना आना तू
इस बाग में दो ही सत्य हैं शाश्वत,
रहूंगा एक वही मैं,और वही तू।

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17 JUN AT 23:40

ज़िंदगी तुम्हारे सौ बहाने
रुतबा तुम्हारा बढ़ा दिया है हमने,
और तुम ही लगते हो सताने
सब खेल तुम्हारा रचा हुआ है,
बस मन ही‌ यह सच ना माने,,,,
हैरान नहीं होतीं हैं अब आंखें,
आंसुओं को लगा लेती हैं ठिकाने
जानते हो, कहां होगा अब मिलना,
बीत जाएगी उम्र, देखते सपने सुहाने,,
होती रहेगी यूं ही जिरह हर रोज़,
थक कर ख़ामोश हो गए मेरे ताने
सवाल करतीं हैं आंखें कम से कम,
और ज़िंदगी तुम्हारे सौ बहाने।

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16 JUN AT 18:34

बैठा है वक्त घात लगाए
झूठ-मूठ की खुशियों में उलझाकर,
आंखों में क्यूं नए सपने सजाए
ठहरती नहीं चांदनी सुबह तक,
खिड़की से झांकती,बस रात बिताए,,,
रोज-रोज की झिक-झिक तेरी,
टिक-टिक करती घड़ी को ना भाए
उंगली पकड़कर उम्मीदें भी हारीं,
कब तक तुझको राह दिखाए,,,,
रहा नहीं जाता है ना, तुझसे मन,
अपने मन की बात बिना बताए
कब तक लम्हों को बचा सकेगा,
वहां बैठा है वक्त, घात लगाए।

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15 JUN AT 11:00

अपरिभाषित हैं पिता
मां को रहती है भूख की चिंता,
रखती हैं आंचल की छांव में
कंधे पर उठा कर दुनिया दिखाते,
पिता चलना सिखाते हैं अपने पांव में,,,,
करते नहीं प्रदर्शन प्रेम का अपने,
मूक मौन की नहीं कोई प्रत्याशा
स्वयं का परिचय हो संतान से,
निश्छल इतनी सी रखते अभिलाषा,,,
क्षीर का कर्ज होता है मां का,
पसीने की पीर छिपाते हैं पिता
घर की देहरी मां से दीप्त है,
घर की अपरिभाषित छत हैं पिता।

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13 JUN AT 23:33

हर मुश्किल का हल होता है
दबे पांव आतीं हैं खुशियां,
टिकना नहीं पल भर होता है
रंज़ आते ही, नाम ना ले जाने का,
इनके बिना जीना दूभर होता है,,,
पाव-छटाक ही नाप में आतें हैं,
मुट्ठियों में तक ना समाते हैं
फिसल-फिसल कर रेत की तरह,
रंग सुख के निकल जातें हैं,,,
आना तय है मुश्किलों का आज जब,
जाने का भी उनका कल होता है
धीर धरे मन लगाना जुगत तू,
हर मुश्किल का हल होता है।

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10 JUN AT 20:28

ये आड़ी तिरछी रेखाएं
हथेली पर जाल बिछाकर,
बतातीं हैं तकदीर का हाल
पड़ जाएं रिश्तों के बीच जो,
ज़िंदगी भर का दे दें मलाल,,,,
आसमान में कर दें सुराख,
तारे तोड़ कर रख दें ये
जमीन पर खिंच जाएं अगर,
खून का मोड़ दें रुख ये,,,,
बचपन के सपनों को सजाकर,
दीवारों में सहेजें दशों दिशाएं
जिंदा रहने का देतीं हैं सुबूत,
ये आड़ी तिरछी रेखाएं।

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8 JUN AT 14:36

हांथ धोकर
ज़िंदगी तुम्हारे ढंग हैं निराले,
देते हो ख़ुशी, रंज़ में डुबोकर
मिलने की आस में, भटक-भटक,
पा लेता है फिर तुम्हें खोकर,,,
सोई है जो लकीरों में उलझकर,
जगती ही नहीं उम्मीद तब से सोकर
बार-बार टूटने की आदत पाल ली,
सपनों को लगती नहीं अब ठोकर,,
हम भी गिन रहें हैं पल-छिन,
दिन-दिन चढ़ रहे उधार तुझ पर
छुड़ा सकते थे पाला, पहले हमसे तुम,
अब ना कहना,पड़ें हैं पीछे हांथ धोकर।



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4 JUN AT 21:26


कभी नीम-नीम,कभी शहद-शहद,
ज़िरह की गिरहें भी हैं बेहद
बीच हमारे है मानो सरहद,
नोंक -झोंक की भी नहीं है हद,,,,
अकड़ तेरी दरिया तूफ़ानी,
मैं भी उफनाऊं आहिस्ता-आहिस्ता
रंज़ और रार में उलझूं ना कैसे,
मैं तो नहीं कोई फरिश्ता,,,,
घुली हुई है मन में, तेरी कस्तूरी,
और पाने की चाह रहे अधूरी
ज्यादा देर टिकती नहीं दुश्मनी,
ऐसा है जिंदगी, हमारा रिश्ता।

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