अगर चलते-चलते इनके कदम बागी हो गए,
कहां जाओगे तुम अगर ये इंकलाबी हो गए ।-
बह चल कहीं के रुकना तेरी फितरत नहीं मंजिले भी तुझ जैसे बागी के बिना मायूस है
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यूं ही मैं बागी नहीं हुआ अंजाम जानता हूँ क्या होगा
या तो माटी हो जाऊंगा या फिर वक्त मेरा होगा-
बागी सा ये इश्क मेरा,मुझ से भी इसकी बगावत है,,
तलबगार तेरी ऩजरों का और तुझसे ही अदावत है..
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जमाने के साथ चल के देखा खुद को 2 कदम पीछे, शरीफ होकर भी बदनाम होता रहा लोगों में, अब जो शराफत से नहीं मिला अब बागी बन के पाना हैं...!
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तुम बन जाओ देश के पैरोकार, मैं
आम इंसान अच्छा हूं।
स्वार्थी दुनिया में दिखाओ चालें, मैं
इनसे नादान अच्छा हूं।
ले लो झूठी शान,शोहरत और नाम, मैं
बदनाम अच्छा हूं।
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जिनके घर की दरों दीवारें बनी हो मोम की,
उनके घर में ना दीपक जलाया करो...
जिनके दिल बने हो कांच के टुकड़ो से,
उनके दिल पे ना पत्थर चलाया करो...
जो देते हैं बिना किसी स्वार्थ के साथ,
कभी उनके दिल को ठेस ना पहुंचाया करो...
दिल के पन्नों पर उभर आते है वो लम्हे,
तुम इस तरह से ना नज़रें लड़ाया करो...
प्रांजली पांडेय
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बड़ा आता है याद अब तो,बचपन की जो बातें थे,
सारा गांव घूमते थे,ये मिट्टी भी खाते थे,
जीवन की कोई चिंता न थी,खावबो में जहाज उड़ाते थे,
उतनी तो बुद्धि न थी,पर फिर भी बड़ो के पैर छुआ करते थे,
रोज रोज एक नये बहाने स्कूल न जाने के,
ढूढते थे,
किसी दिन मिल गयी छुटी तो सारा दिन घूमते थे,
बड़ा याद आता है अब तो,बचपन की जो बाते थे।
सुकून कहा अब मिलता है,जो बचपन मे मिलते थे,
AC के हवा में ठंड कहा जो बागों के बयारों में मिलते थे।
और कहने को ये दुनिया बड़ी है,पर कहा हम इसमें सुरक्षित है,
बड़ा तो माँ का आँचल हैं,जहाँ हम सुकून से उसमें छुपते थे।।
-त्रिपाठी प्रशांत
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किया जुमलों का बहिष्कार अगर वो बागी हैं, तो मैं भी बागी हूं।
किया है खुला ऐलान वोट दो कर देंगे तुम्हें नोटों से माला-माल और हमे यह बात लगी अपमान अगर यह बागी हैं तो मैं भी बागी हूं।
कल तक जो किसी के जेब काट रहे होते है आज कल लग रहे उन्ही के जयकार, कहलाते है वे प्रधान ये बात नहीं स्वीकार, तब अगर कोई बागी हैं तो मैं भी बागी हूं।-
तेरे इश्क़ में हम "बागी" तो हुए....
पर किस्मत तो देखो ,, तेरे "हमराही" ही ना बन सके....-