लहरों से मेरी बात कहो,
तुफानो को सन्देश भेजो,
मैं भवर में आचुका हु,
चाल अपना प्रभाव करो,
वेग तुम्हारी असीमित है,
बूझो परखो और इस्तमाल करो,
बड़ी पर्वत की चट्टान न देख,
रेगिस्थान को बगान करो,
विघ्न आए जो समर में,
निडर तुम प्रहार करो।
- प्रशान्त त्रिपाठी
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I call every one as "BHAI" gender doesn't matter. So don't comment for this.
Lover o... read more
हो रही है हर सुबह धूप की एक किरण लेकर,
निकल रहे है नई ऊर्जा के साथ,
लौट रहे हैं थकान लेकर,
कल को बनाने की उम्मीद में,
हम हर आज खट्टते जा रहे है,
रात बितती नही,
ये साल बीते जा रहे हैं,
प्रण जो लिया था सुबह मैं,
क्या पूरा हम कर पा रहे हैं,
क्या खुद के वादों पर हम अड़ पा रहे हैं,
थक हार कर हर शाम घर को लौट आरहें हैं,
ये भाग दौड़ के जिंदगी मे,
कर भी कुछ न पा रहे हैं,
रात बितती नहीं है,
साल बीते जा रहे हैं,
आसमान पाने की जुनून लेकर हर सुबह
हम जाग रहे है,
थक हार कर शाम को हम घर लौट आरहे है,
रात बितती नही है,
साल बीते जा रहे है।।
- प्रशांत त्रिपाठी-
जब तुम दौड़ के आवोगे,
पहले, मन भर गले लगायेंगे,
फिर तेरे चेहरे को देखेगे,
जाने के जल्दी में रहोगे,
पर कुछ देर तुम्हे रोकेंगे,
हाथ मिलाना, फिर निकलना,
हथेली से धीरे धीरे,
उंगलियों से नाखून तक विदा करेगे,
चलो ठीक है होगया,
अब बाय।।।
-प्रशांत त्रिपाठी-
बाहर की बस हवा बदली है,
अंदर की रुख वही है,
पेड़ो पे बस कौवे बदले है,
काव काव का शोर वही है।
कोयल हंसो में भेद डालना,
ये आदत पुरानी वही है,
एक दूसरे पर टूट पड़ना,
फिर चाय के साथ वही है
हमको आपको आपस मे भिडाकर
सत्ता पर मौज करने वाले वही है।।
- प्रशांत त्रिपाठी
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कितनी मोहब्बत है तुमसे,
ये हम कैसे बया करे,
नजर हटती नही है तुमसे,
तुम्हे देखे या तुमसे बात करे,
मेरी बात मानो ये नजर हटा लो,
अगर नजर से नजर ये मिलती रहेगी,
मेरी आंखो में नशा तेरी बढ़ती रहेगी,
फिर हम कुछ बोल न पाएंगे,
बस देखते ही तुम्हे रह जायेगे,
कुछ बोलो भी या बस देखते रहे,
आंखो ही आंखो में बात करती रहे,
रोज अगर हम ऐसे मिलेगे,
हम कुछ बोल नही पाएंगे बस देखते रहेंगे,
नीद खुल गई है अब फिर हम दूर हो गए है,
पर मिलने के समय अब पास आ गए हैं,
बहुत जल्द हम फिर मिलेंगे,
बस सरकार की पाबंदी हटने दो,
University फिर एक बार खुलने दो।।
- प्रशान्त त्रिपाठी
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अपनो के अंदर गैरो के,
चेहरे साफ हो गए है,
जो कल तक हमारे साथ थे,
आज वही हमारे खिलाफ हो गए है।।-
चलो आज हम भी एक झूठ बोलते है,
तुमसे मोहब्बत नही करते ये काबुल करते हैं,
तुम रहो या ना रहो क्या फर्क है, जब झूठ ही है
तो तेरे बिन रात को हम तकिया नही भिगोते हैं,
तेरी याद, ये तो कभी नही आती,
और मोहब्बत, तेरे जितना हम भी करते हैं।
और ये इश्क के नाटक ये तो बस टाइमपास है,
जो तुम्हे हम बता रहे हैं,ये कुछ पल का एहसाह है,
ये सब तो झूठ है,
पर तेरे मेरे जिंदगी में एक खेल हो रहा है,
ये झूठ सच,और सच झूठ लग रहा है,
बे नाम ही हम बदनाम हो रहे है,
ये ईमान के चक्कर में बेईमान हो रहे हैं।।
- प्रशान्त त्रिपाठी
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जीत की उम्मीद है
मांजिल की प्यास है,
प्यास बुझाने चल रहे है हम,
हा अकेले चल रहे है हम,
हा अकेले चल रहे है हम।।-
तेरे संग मुझे एक निशानी चाहिए,
इस बदन पर एक रूहानी चाहिए,
तेरी मेरी एक कहानि चहिए,
मैं तेरा राजा तु मेरी रानी चाहिए।।
- प्रशान्त त्रिपाठी-
आओ तुम्हे गांव घूमते है,
पीपल के वो छाव दिखाते है,
बागों के रंग बिरंगे कलियों को,
चूमते तितली संग भवरे दिखाते हैं।
बूढ़े दादा की खाट बिछी,
लगी जहाँ है चौपले,
छाव पेड़ के कोने में लगी
जहाँ हैं पत्तो की बाजी,
गुली डंडे, लुका छिपी,
बच्चो में लगी है कन्चो कि बाजी।
हसिया, फवडा, खुरपी लेके
खेतो में चले किसान,
भेड़ बकरी गाय भैस लेकर,
निकल पड़े है चरवाहे।
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