प्रांजली पान्डेय   (Pranjali PDP)
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Joined 12 October 2020


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Joined 12 October 2020

कितनी रातें बीत गई
इस तन्हाई की मौसम में,
कितनी बातें भूल गए
तुम करते थे जो यौवन में,

क्यों अंजान बने खुद से
क्या सब बातें भूल गए ,
ऐसा तो पहले ना था
क्या सारे वादे भूल गये,

याद करो उस दिन को तुम
जब हम पहली बार मिले थे ,
उन बंजर राहों पर भी,
खुशियों की कंवल खिले थे

(Read caption)

प्रांजली पांडेय

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"आकाश में बिखरे स्वर्णिम तारे ,
और तारों के साथ खूबसूरत चांद हो,
नदियों में प्रेम के दीप हो प्यारे ,
जिनमें झिलमिलाती शमा की रात हो,
यह जो क्षण बिताऊं मैं साथ तुम्हारे,
बस मेरा यही स्वप्न साकार हो,
गंगा की घाट पर, नौका विहार,
और प्रियतम बस तुम्हारा साथ हो...।।

रात्रि के उस प्रथम पहर में,
शेष ना और कोई बात हो,
रहे मौन सारी प्रतिक्रियाएं, ,
उस पल हांथ में मेरे तुम्हारा हांथ हो,
नेत्र जब मेरे पुलकित हो उठे ,
उस क्षण तुम बस यही समझना,
मैं सावन कि प्रथम बूंद, और
प्रियतम तुम मेरे लिए फागुन का रंग -लाल हो....।।

प्रांजली पांडेय

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तुम्हें चाहा जो मैंने इतना, तो मेरे दिल की क्या गलती,
तुम्हारे ख्वाब को गिन कर ,मेरी पलकें नहीं थमती,
हवाएं भी सदाएं भी अब तो, तेरे संदेश लाते हैं,
तुम्हे देखे तो मुझसे ये, मेरी चुनरी नहीं रुकती ।

ज़माने में थे जो रुसवा वफ़ा की बात करते हैं
वफ़ा की दास्तां कह दो, तो वो इक़रार करते हैं
जानती हूं कि ज़ख्मों से भरी है, इश्क़ की गलियां,
जानकर भी ये जानेमन हम तुमसे प्यार करते हैं ।
सुन कर लफ्ज़ उसके यह ,पड़ी थी सोच में कब से,
कि जाने लोग हैं कैसे जो ऐसी बात करते है....!!

प्रांजली पांडेय

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राही...!!

प्रांजली पांडेय

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सोना...

प्रांजली पांडेय

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वादे हक़ीक़त तो नहीं फिर भी,
वो वादा कर लिया होता,

मंज़िले है जुदा अपनी तो
साझा कर लिया होता,

मेरी आंखों कि स्याही से,
जो तुझपे गीत लिखे थे,

मुकम्मल हो ही जाता सचमुच ,
जो तुमने पढ़ लिया होता

खुशकिस्मत मानकर खुद को,
गुजारा कर भी लेती मैं,

मोहब्बत के लिए दुआ मांगो ,
असर वो कम नहीं होता,

🌻प्रांजली पांडेय🌻

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साथ बिताए पलों की गिनतियां
याद आती है,

दिन में चैन,ना रात में
नींदियां आती है,

कितना मैं उसकी यादों में
अश़्क बहाती हूं...

क्या उस पत्थर-ऐ-दिल को
हिचकियां भी न आती है....!!

प्रांजली पांडेय

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गोरे तन पर लिपटे मृदु अंजन से दुकूल में जब,
मेरा श्यामल- श्यामल कोमल बाल लहराता है
वो मुझे खुले बालों में देखने रविवार को आता है।

बादलों से घिरे अपने काले बालों,
सुखाती अटारी पर जब भी मैं,
धीरे से पवन का झोंका आ जाता है,
वह मुझे खुले बालों में देखने रविवार को आता है।

इन स्निग्ध लटो से छा जाए तन पर मीठा सा खु़मार,
मानो कपोलों पर अंकित करते शीतल चुम्बन बेशु़मार,
इस प्रणय जीवन के समर में जीत ही क्या,
हार भी मन को भाता है,
वो मुझे खुले बालों में देखने रविवार को आता है।।

प्रांजली पांडेय

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मां अगर धरती है, तो आसमां है पिता
मां अगर मंजिल है, तो कारवां है पिता
मां के बाद अगर कोई है तो वह पिता ही है,
क्योंकि....
मां अगर उंगली है , तो सहारा है पिता

मां अगर समंदर है तो बादल है पिता,
मां अगर जीवन है,तो पोषण है पिता
मां अगर मीठी नींद है तो सुंदर ख्वाब है पिता,

मां अगर खिलखिलाती खुशी है, तो मुस्कान है पिता
मां अगर संस्कार हैं तो खुशियों के श्रृंगार है पिता
मां अगर फूलों की कली है ,तो उनके पराग़ है पिता

बच्चों के जीवन में तो माता - पिता रथ के
पहिए के समान होते हैं जैसे रथ का ,
एक पहिया ना हो तो रथ का चलना नामुमकिन हो जाता है वैसे ही
माता- पिता ना हो तो जीवन का चलना मुश्किल हो जाता है,
इसलिए...

मां अगर मंदिर है तो उस मंदिर के देवता है पिता,
मां अगर नैया है , तो उसके खेवैया है पिता। !!

प्रांजली पांडेय

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यह रंग - बिरंगी दुनिया तो इन दो आंखों का मेला है,
कच्ची उम्रों में मैंने ऐसे कितने दर्दों को झेला है।।
जिस पल मुसाफ़िर बन निकली, अंजानी मंजिल की राहों में

सोचा रुक कर थोड़ी सांस तो ले लूं, इन पेड़ों की
छांवो में ,
चलते-चलते दो राहों में भूल गई,
मैं कौन सा रास्ता मेरा है,...
यह रंग - बिरंगी दुनिया तो इन दो आंखों का मेला है ।।

उन राहों पर चलते चलते मुझको ऐसे लोग मिले,
जो हारे- हारे लगते थे पर अंदर से ध्रुव - तारे निकले,
जिनको भंवर समझ डरती थी, आखिर वही किनारे निकले,

पतवार में बैठे फिर सोचा मैंने क्या यही कुदरत का खेला है,
यह रंग - बिरंगी दुनिया तो इन दो आंखों का मेला हैं,
कच्ची उम्रों में मैंने ऐसे कितने दर्दों को झेला है।

प्रांजली पांडेय

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