राधा कृष्ण की प्रीत है,
कृष्ण चितचोर तो राधा मनमीत हैं।
🙏🙏जय श्री राधाकृष्ण🙏🙏-
तप्त माथे पर, नजर में, बादलों को साध कर
रख दिये तुमने सरल संगीत से निर्मित अधर
आरती के दीपकों की झिलमिलाती छाँह में
बाँसुरी रखी हुई ज्यों भागवत के पृष्ठ पर-
तेरे सांसों से ही कान्हा ,है मेरा वजूद ..
तेरे होठों से लगी जब, मैं हो गई आसूद ..
मेरे रोम रोम में है, बस तू ही मौजूद..
तेरी ही शरण रहुँ ,यही मेरा मकसूद..-
“जीवन बांसुरी की तरह है जिसमे बाधाओं रूपी
कितने भी छेद क्यूँ न हो !
लेकिन जिसको उसे बजाना आ गया उसे जीवन
जीना आ गया !!”-
"जय श्री राधेकृष्णा "
कान्हा की बाजे जब बांसुरी
तो झूम उठे राधा का तन-मन
और झूम उठे सारा वृंदावन ...🌼
बंसी पे तान जब छेड़े कन्हैया
पैरो की छन-छन बाजे पायलिया
....बाजे पायलिया
मटकी फोड़ नटखट कहलाए
आँखों में समाए जैसे अंजन
कि प्यारा है यशोदा का नन्दन ....🌼
राह चलत को राह भूलाए
जब कान्हा तू मुरली बजाए
....मुरली बजाए
ऐसी मधुर है बांसुरी धुन
भूल जाए कोई भी सुध-बुध
कि बस गए रग-रग में यूं तुम .....🌼
शेष अनुशीर्षक में पढ़े .....निशि 🙏🙏
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एक तू तेरा इश्क,और ये सांवला रंग
जैसे कृष्ण हो अपनी बांसुरी के संग।-
हे कान्हा.....
अवतार वैसे तो तुमने द्वापरयुग मे लिया था
"संभवामि युगे युगे"कहकर अन्याय पर न्याय को, अधर्म पर धर्म को फिरसे जिताने के लिए...
पर क्यों लगता हैं तुम्हें आज फिरसे धरती पर आने की जरूरत है
द्वापर से कुछ ज्यादा ही
देख रहे हो ना रे पितांबरधारी
आज हर देवकी आज अपने ही परिवार में सहमी सहमी सी रहती हैं
आज हर यशोदा नहीं ले पाती उसके बालगोपाल की मनभावन लीलाओं का आनंद
आज की वर्किंग सुपरमॉम जो ठहरी
कंस के आतंक ने मथुरा की ही नहीं, हैवानियत की हदें पार की है पर हमारे अंदर का कन्हैया कब जाग उठेगा
भंवर में कितने विघातक कालिया नाग छिपे हैं यहाँ
कौन करेगा इस यमुना में कालियामर्दन
आज गर कोई सुदामा बीच रास्ते में मिले तो उससे मुंह फेरने वाले कुबेर ही हैं यहाँ
उन्हें कौन अपनेपन से गले लगाएगा
डरती है कोने कोने में छिपे दुःशासन से हर द्रौपदी, कौन बचाएगा उसका पवित्र दामन
ये दुनिया जो बारात में सामने और मय्यत मे पीछे चलती हैं, क्या वहां मिलेगा कोई तुझसा साथी?
हर अर्जुन राह भटक रहा है, जुल्मी लोगों मे अपनों को देख कतरा रहा है
कौन पढ़ाकर उसे गीता, बढ़ाकार उसकाआत्मज्ञान बन जाएगा उसका सारथी
तुम ही तो हो हमारे अस्तित्व का कारण
तुम ही तो बसे हो ना हमारे अंदर
फिर छेड़ दे बांसुरी के वह दिव्य सूर,जगा दे हमारी आत्मा में बसा वह तुम्हारा रूप
और करा दे दर्शन हमें
तुम्हारी एक और कृष्णलीला का...-