निशा कमवाल   (Nisha✍️)
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Joined 12 May 2020


Joined 12 May 2020

कौन यहाँ किसी का इंतजार करता है,
कौन यहाँ किसी से प्यार करता है,
अपनी उधेड़बुन के मतलब में,
सब रिश्तों का व्यापार करता है।

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वहम था उनकी फ़िक्र में मेरा भी ज़िक्र होगा,
पर वहम तो वहम ही होते है,
पर ज़िक्र औऱ फ़िक्र अपनों के होते है,
बस वहीं अपने ही तो अहम होते है,
अपनों के लिए वादे फ़िक्र संकल्प होते है,
बेवजह तो बस यहाँ विकल्प होते है,

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मस्त है अपनी मस्ती में हम कौन सा मलाल करते है,
दुख तब होता है जब लोग किस्मत पर सवाल करते है,

सब को पता है किस्मत से परे कुछ नही मिलता यहाँ,
फ़िर भी ऐसे सवाल पूछ कर वो भी कमाल करते है,

कौन किस हिज्र से गुज़र रहा है किसको मालूम है,
कौन यहाँ किसका हाल ए ख्याल करते है,

चल बसता है वो ज़माने की अलविदा कहकर,
कौन यहाँ  किसकी  सँभाल करते है,

क्या ही गिला शिक़वा करना किसी से,
सबकी सोच कर हम ख़ुद भी अपना बुरा हाल करते हैं।

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कोई किसी के ख़्याल में जीता है,
कोई किसी के मलाल में जीता है,

जिसे आदत हो जाती है पीने की,
वो सारे गम  हर  हाल में पीता है,

न कोई शिकायत न कोई गिला है,
दिल से लगाया जो भी गम मिला है,

सीधे को ठोक ही दिया जाता है,
ये उसकी अच्छाई का भी सिला है।

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कोई बूँद को तरसा,कोई समंदर का हक़दार है,
यहाँ सभी किसी न किसी शय के तलबगार है,

जुनून की हद में उस पार कब के चले जाते,
पर आँखों मे पड़ी एक हया  की भी दीवार है,

तरबीयत की तवज्जों को सरांखो पर रखा है,
वरना बाज़ार में हर रोज़ एक नया ख़रीददार है,

नेकता का ईनाम बड़ी शिद्दत ओ शान से मिला है,
पर गुनहगार की नज़रों में मेरा किरदार गुनहगार है,

कहने को इशारा ही काफी है और हम क्या कहे,
मेरे कहने से ज़्यादा आप ख़ुद ही समझदार है।।

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झुक जाये जो पेड़ वो वाकई फलदार है,
ये तो किस्मत है कौन किसका हकदार है,

जिंदगी की भागदौड़ में मेरा मेरा लगाया है,
क्या करे यह मानसिकता से जो बीमार है,

कइयो का तो कम में भी गुजारा हो रहा है,
मारा मारा फिर रहा जिसके पास बेशुमार है,

रुकना नही, करने का एक ही बहाना है,
ना  करने  के  यहाँ  बहाने   हजार है,

मन की सुन वही कर जो मन कहता है,
क्योंकि कहने को यहाँ वही लोग चार है।

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यकीं न आता है इस पुरसुकूँ सी शय देख कर,
सहम जाता है दिल ओ वफ़ात का भय देखकर।

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आपसे मिलने के बाद जिंदगी जीने की वजह हो गई,
मिलने की उम्मीद न थी मिल गये रब की रज़ा हो गई,

मांगा  था  रब  से  दुआओं  में  हर पल हर पहर तुम्हें,
मिल गये आखिर आप हमें मेरी दुआ भी अदा हो गई

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उम्र के तक़ाज़े में दूरी  भी  लाज़मी है,
कौन ही होगा जो ताउम्र साथ निभाये,

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ख़ामोशी बनी वसीयत है,
गम बन गए मिल्कियत है,

ऐसे होने के बावजूद भी,
लोगों को होती अज़ीयत है,

जैसे भी है ख़ुश अपनी जिंदगी में,
बस ऐसी ही साफ़ सी नियत है,

कोई फ़र्क नही पड़ता क्या हो रहा है,
दूसरों में झांकना उनकी तबियत है,

किसी से मुँहजोरी करना ठीक नही,
बस यही एहतराम मेरी तरबीयत है।


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