पल दो पल आकर मेरे संग बिताना तुम
हो सके तो इस बरसात ठहर जाना तुम
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एक रोज़ जब हमारी मुलाक़ात होगी
उस लम्हें में कुछ तो अलग बात होगी !
शायद उस मौसम में भीगी सी बरसात होगी
या महताब की रौशनी से रौशन एक
रात होगी ! !-
दूर हो तुम अगर
तो मोहब्बत का मौसम न आएगा,
अकेले ही तन्हा रहूँगा मैं
कि अब के बरस सावन का मौसम न आएगा..
खुश होऊंगा किसकी ज़ुल्फ़ों से
मेघ की घटाओं को देख कर,
कि तुम न रहोगी अगर
मेरे घर बहार का मौसम न आएगा..-
वो तो बरसात सी आयी थी
हर बूंद में जिंदगी संग लायी थी
पर उसका जाना तो तय था,
कमबख्त गलती तो हमारी है
उसके आने से रोशनी क्या मिली
हम उसे सूरज की किरणे समझ बैठे।-
अब तुम्हें और क्या सुनाऊँ अपना दर्द-ए-गम
क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता मेरी आँख-ए-नम
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कभी मेरी तुम से मुलाक़ात होगी
आँखों से यादों की बरसात होगी
जान-ए-जां, जो कभी कह नहीं पाई थी तुमसे
होंठों पर दबी सी वो बात होगी-
बरसात थम चुकी है मगर हर शजर के पास
इतना तो है कि आप का दामन भिगो सके
[ अहसन यूसुफ़ ज़ई ]
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बिना बदरा के बिजुरिया कैसे चमके
कैसे चमके? कोई पूछे रे हमसे
बैठे हों जब मीठे सपने सजाई के
ऐसे में हौले से पास कभी आई के
जो बिछवा बजाई दे गोरी छम से
कसम से!
बिना बदरा के बिजुरिया ऐसे चमके-
बरसात भी अब साहूकार सी हो गई है साहब,,,,
जब देखो तब आंसूओं से ब्याज लेने आ जाती है....!!!!!-