गेरौं से गर तुम झगड़ने लगे हो,
तो, दोस्तों के साथ को डरने लगे हो !!-
बदल गए।
देख ते है सभी
पर देख ने नजारे बदल गए।
सोच ते है सभी
पर सोचने के अंदाज बादल गए।
पढ़ ते है सभी
पर पढ़े लिखे इंसान बदल गए।
कह ते है जमाना बदल गया
पर वो कहने वाले लोग बदल गए।
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तुम्हारे लिए खुद को बदलने से,,,
अभी तो तुम खुश हो जाओगे...
मगर ,कुछ साल बाद यही बदलाव देख के,,,
अजनबी होने का इल्ज़ाम लगाओगे...-
तुम्हारे लौटने तक
वक्त के साथ और भी
चीजें बदल जाएंगी.....
अल्हड़ कविताएँ परिपक्व हो गई हैं
बेपरवाह बहकती राहों
का भटकाव
अनायास ही सधी और संजीदा
चालें चलने लगा है....
मायने बदलती जिंदगी का
ठहराव
पूछने लगा है हिसाब
व्यर्थ में उलझे
निरुत्तरित प्रश्नों का!!
सत्य भी यही है
तुम्हारे लौटने तक
सब बदल गया है ..!!
प्रीति
365 :6
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बचपन से अभी तक अगर कुछ नहीं बदला तो ये है की,
हम तब भी शून्य के पीछे दौड़ते थे और भी आज भी।-
कितना कुछ बदल रहा हैं |
लग रहा हैं कि जैसे मौसम के साथ साथ
बचपन भी लौट आएगा |-
यूँ तो हमने अपनी मॉं को,
भगवान बनते देखा हैं |
( in caption 👇👇👇 )
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इसीलिये शायद नही आती है अब और हिचकी मुझे,
कि तुम याद किया करते होगे जैसी मैं थी वैसे मुझे ।।-
बदल गए हो तुम,या बदल गया हूं मैं,
या बदले हालात है,
छोड़ो इन सब को,सब फिजूल की बात है,
आऔ कभी चाय पर की एक मुलाकात हो,
नुकसान हो या फायदा,खैर कुछ तो नयी बात हो।-