" ढूँढता हूँ..."
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दफ़्तर से लौटी माँ
दहलीज पर आहट,,साड़ी खींचता
पैरों से लिपटता मासूम बचपन...
पानी में डूबे दलिया के दाने
अधपका सत्तू
चावल का पानक
और सौंधी स्मृतियाँ.....
कुछ जन्म
आँगन से दूर आँगनबाड़ी
आवास से दूर छात्रावास
दिन रात एक समान
बोझिल एकाकीपन में
मिट्टी के स्पर्श बिन
मृत्यु शय्या पर कराह ले रहे
आसक्ति आँखों में पानी लिए
और होंठ सूखे सी पपड़ी लिए
गंगा अमृत,माँ चरण गंधोदक बिना
अग्नि संस्कार से वंचित
दुर्लभ भारतीय जीवन
सात समंदर पार.....उस पार!!
न जाने किसके लिए संघर्ष?
15.2.21
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आज क्यूं बड़ी जलन हो रही हैं
जब बुज़ुर्ग बोलते कि हमेशा हसता रेहेता है
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कोई ले आए वो बचपन, कोई ले आए वो सावन
बारिश में झूमूं मैं नाचूं, मां का पकड़े रहूं दामन।
ना भूत का हो पछतावा ना भविष्य की परवाह हो
मैं नाचूं गांऊ रोऊ चाहे जो हो पैरों तर हो मेरा आंगन।
देखे हैं सब रंग जीवन के देखे हैं लाख मेले मैंने
कोई वो खेल ले आए
जहां पर बोलता बंदर, जहां पर नाचती नागिन।
चढ़ के कुंदू फांदू आम और जामुन की डालियों से
वापस कैसे लौटाऊ चुने जो फूल कलियों से।
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बचपन में भरी दोपहर नाप आते थे पूरा गांव,
जब से डिग्री(°c) समझ में आया पाव जलने लगे
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बचपन नहीं हो वो तो दुनिया अलग थी,
जिसका मैं अकेला राजा था..!!
एक कहने पर ही सब मिल जाता था,
जो कुछ भी मैं चाहता था..!!
किसी काम का बोझ नहीं,
बस खेलना खाना और सो जाना था..!!
कोई नहीं था पराया यहां पर,
सबको सच्चे दिल से चाहना था..!!
खेलते खेलते कहीं भी सो जाते थे,
मगर आंखें खुलती वहीं जहां पर ठिकाना था..!!
उछल कूद कर के सबको सताते थे,
बस खुद का मन बहलाना था..!!
अरे बचपन नहीं वह तो जन्नत थी,
जिसका हर एक लम्हा दीवाना था..!!
बचपन तो खूबसूरत जादू था,
जिसका हर एक जज्बात निराला था..!!-
आज भी प्यार करते हैं ,
उन कंचों से,
उन टूटे हुए गिल्ली डंडों से..
आज भी मोहब्बत उस बूढी नानी से है
जो कहती थी "मैं तुझसे शादी करुँगी",
बदले में रोज बेर दूंगी.😁
आज भी साईकिल के टायर दीवाने हैं,
जो कभी हमारी उड़न खटोला थी.....
वो दस पैसे की आमकूट, बीस पैसे की आमपाचक,
कभी हमारी राजशाही आठ आना की कोला थी.....-
कितने ख़ूबसूरत हुआ करते थे,
बचपन के वो सुनहरे दिन.!
सिर्फ दो उंगलियाँ जुड़ने से,
दोस्ती फिर से शुरु हो जाती थी!!
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**जब मैं छोटा बच्चा था...**
जब मैं छोटा बच्चा था,
उस वक्त ही अच्छा था...
ना किसी से बैर ना किसी के टकराव,
बस थोड़ा रुसना,
यहीं जीवन का दस्तूर था..
जब छोटा बच्चा था,
उस वक्त ही अच्छा था...
आज के दौर में सब बेगाने निकले,
किसी ने दिल ऐसा तोड़ा,
इस दर्द से अनजाने निकले,
वक्त बदल गया हैं अब,
ना जाने क्यों मतलबी दुनिया में,
कौन सच्चा और कौन अच्छा हैं,
जब छोटा बच्चा था,
उस वक्त ही अच्छा था...-