पहले पड़ोसी भी परिवार होते थे।
अब परिवार भी पड़ोसी हो गये हैं।-
✨✨पड़ोसी एवं दिखावा (邻居和炫耀)✨✨
क्यों दुश्मनी का दिखावा करते हो?
पसंद शब्दों को क्या शिकवा-गिला था? ...(१.१)
बदनसीबी के इस आलम में भी इतना
अच्छा लफ़्ज़ क्या मेरा ही मिला था? ...(१.२)
कुछ कहना है यदि तो मेरे सामने ही कहो।
पीठ पीछे के चुगलखोरों की गिनती नहीं! ...(२.१)
पड़ोसी भी मित्र ही होता है! कुछ गलती हुई
तो हमें बताओ, सुझाव है यह विनती नहीं। ...(२.२)
खामियाजा भुगतना पड़े बेमतलब का
तो शामिल आपको करेंगे जरूर। ...(३.१)
उम्मीदों का दरवाजा बंद हो तो दहकती
आग में क्यों जलेगा यह बेकसूर। ...(३.२)
मगरूर बन दूर रहने का कोई नफा भी नहीं।
क्यों करें दिल से दफा जब मैं खफा ही नहीं। ...(४)
सदियों से पड़ोसियों को मित्र मानता आया हूँ।
चेहरा आईने में देख, खुद पहचानता आया हूँ। ...(५) ...(✍️शब्दार्थ Caption में)-
(व्यंग)
इन नेताओं का क्या कहना,
ये बड़े बड़े काम कर जाते हैं,
खाते है सुबह सगे बाप की कसम,
शाम को इनके पडोसी मर जाते हैं...!-
😎😎
✨आज का ज्ञान✨....😜
ज़्यादा ध्यान उस पर दें,
जिसे आप ब्याह के लाये हैं!
उस पर न दें,
जिसे पड़ोसी ब्याह के लाया हैं!!
😉😉😉😂😂😂
#GyaniWords-
आओं बहन थोड़ी चुगली लगाते हैं,
दूसरों के घरों की कहानियां सुनाते हैं।
तुम अपनी सुनाना, मैं अपनी सुनाऊँगी,
छोटी छोटी बातों को बढ़ा चढ़ा कर बताऊँगी।
चलो पड़ोसी होने का फ़र्ज़ निभाते हैं,
भाभी जी के कान भर आते हैं।
चाय के नाम पर उनके घर जाते हैं,
थोड़ी हम ताक झांक कर आतें हैं।
हाय शर्मा जी की बेटी तो घर देर से आती है,
पता नहीं कहां कहां जाती हैं।
शुक्ला जी का बेटा भी कुछ कम नहीं,
महँगी गाड़ियों में घूमता हैं और
शौक भी बड़े वाहियात रखता है।
आओं हम ऐसा चक्कर चलाते हैं
इनकी कुछ अफ़वाह उड़ाते हैं,
चरित्र पर एक दाग लगाते है।
उनके सीधे सादे बच्चों को बदनाम कर आते हैं।
आओं बहन थोड़ी चुगली लगाते हैं,
भाई साहब को भी इनमें उलझाते हैं।
आओं बहन कपड़ो पर भी बातें बनाते हैं,
ट्रेंड ट्रेंड कर हाय हाय मचाते हैं।
चलो पड़ोसी होने का फ़र्ज़ निभाते हैं,
अच्छाइयों में भी खामियां निकालते हैं,
अपनी बातों के ताने कस सबका दिल दुखाते हैं।
आओं बहन थोड़ी चुगली लगाते हैं
दूसरों के घरों में ताक झांक कर नए किस्से बनाते हैं।।
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पत्रकार- "पड़ोसी मुल्क हमारा दुश्मन है, फिर आप उस से लोहा क्यों खरीदते हैं?"
मंत्री- "हमें दुश्मन से लोहा लेना चाहिये।"-
कभी पड़ोसी भी
घर का हिस्सा
हुआ करते थे...
आज एक ही घर
में ना जाने कितने
पड़ोसी रहते हैं..!!-
संजीदा सी ज़िंदगी में, यूँ मुस्कुराहट चंद है
बिखरे शब्द हैं सभी ,न कविता है न छंद है
क्या कहें कि आजकल लगता अधूरा सा है सब
पड़ोसी की ताक-झाँक...जाने क्यों बंद है🤔🙄
😃😃😃😃😃😃😃😃😃😃-
सुन ले ऐ नापाक पड़ोसी !
हमारा भी एक इतिहास है ,
न सर झुका है, न झुकेगा
बाकी जब तक हम में स्वांस है ...-