अब कोई शिकायत नहीं। अवसाद के क्षणों में अपने प्रियजनों के बोले ढांढस के दो मीठे बोल क्लांत मन को फिर से तरोताजा कर ही देते हैं।
घनी अँधेरी रात के बाद, नारंगी सुबह सरीखी उर्जा की अभिनव अनुभूति होती है।
यही तो है मानव, प्रकृति का अनुयायी, अपने प्रियजनों के संबल का आकांक्षी, उनके संबल तले, पोषित और फलित।-
✍️"Somehow, we manage to get the information about our loved ones!"✍️
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मालूम होता अगर घंटों या दिनों पहले तो शायद मैंने भी आँखों को संवारा होता।
उनका इस्तिक़बाल करने की खातिर ही सही, इनमें रौनक लाकर निखारा होता।
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मैं सोचता हूँ कभी कभी कि मेरे इर्दगिर्द कभी, कहीं कोई तो हसीन नज़ारा होता!
मुंतज़िर हों ये आँखें जिनके लिए, वो चीज कभी इन नज़रों को वहीं गवारा होता।
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पर कोई मसला नहीं, ये तो रब का करामात है, उनका लिखा भविष्य ही तो है ये।
घट जो रहा है मुसलसल,होनी को कौन टाले, आज मुझे घटते दिख रहा जो है ये।
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खैरियत ग़र सबकी ठीक हो तो पूछने पर जवाब सुनने में भी कानों को सुकून है।
पर पहले से बगैर पूछे खैरियत भी वैसे जाने कौन, पर जानने का ही तो जुनून है!
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खैरियत की खबर पाने की चाहत अपने चहेतों की बेशक यहाँ हरेक को होता है!
तबस्सुम भी अफ़सुर्दा मुखड़े पर मुन्तज़िर होती, देखा है ऐसा अनेक को होता है।
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रब के बनाए कायनात में किसी न किसी तरह ये खैरियत का खबर होते रहता है।
उन्हें भी मालूम है, वो न बताएं भी तो क्या, उन्हें दिक्कत नहीं अगर होते रहता है।-
काश ! मैं बादल बन जाऊं।
प्रियजन से मिलने उसके
गाँव में बरस जाऊं।
सूखे पेड़,सूखी घास,
सूखे ताल-तलैया,नदी-नाले
कुएँ आदि भर आऊं।
प्यासे जीव-प्राणी,नर-नारी
की प्यास बुझा आऊं।
उजड़े बाग-बगीचे,खेत-खलिहान,
व बंजर भूमि को नव जीवन दे आऊं।
खाली पड़े मटके,सुराही व विशाल टांकों में
पानी ही पानी कर आऊं।
प्यासी-पथराई आंखों में
उम्मीदों के सागर की लहरें छोड़ आऊं।
काश ! मैं बादल बन जाऊं।
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सियासत से दूर कोई कोना है,दिल में💓
जहाँ आज भी दीप जलती है,दुवाओं की ,🔥
है,असर-दर-बसर इस धरा की सफर, अद्भुत
कलिकाल के प्रभाव से अंधकार का प्रकोप भी,
चहक उठे विश्वास, जब प्रकाश यहाँ चमकती है,
घरों में दिव्यता है, अनुभूति अनमोल शक्तियों की
आडम्बर है,अंधविश्वास है,फिर भी पास प्रकाश है,
चिरागों में समाहित कल्याण,उत्साह की अहसास है,
यही तेजमय विशालता है,देश के आकांक्षाओं में
दृढसंकल्पित हैं,लोग आज भी अपनी क्षमताओं में
कितना अच्छा,रोशनी जलाकर आह्वाहन का प्रकल्प
पराकष्ठा यही ,अंधेरे को उजाले से भगाने का विकल्प
चलो दूर करें वहां नहीं,💓मन में जो अविश्वास है,...
चलें सही ,एक-एक कदम में ही,विश्व का कल्याण है,..-
ऐसी भी बात होती है क्या, जो बयां ही ना हो पाए,
उन्हें क्या पता, बया-ए-इश्क़ इतना भी आसां कहां।— % &-
तुम मुझको गले लगा लेना
जब गिरूँ तो मुझे उठाकर गले लगा लेना
जो भय हो मेरे अंदर उसे मिटा देना
तुम मुझको गले लगा लेना।
जब-जब जीतूँ जब-जब हारूँ
तुम मुझको गले लगा लेना
जो दर्द मुझे हो या प्रेम मुझे
तुम मुझको गले लगा लेना।
नासमझी सी बातें करूँ जब
सब गले लगा समझा देना
जब गला रुंधे ,आसूँ निकले
जब बोलने में असमर्थ मैं हूँ
तुम मुझको गले लगा लेना
जब-जब रूठूँ, जब-जब खुश हूँ
तुम गले लगा के मना लेना
हर खुशी में शामिल हो जाना
तुम मुझको गले लगा लेना।
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कोई स्वजन
तेरा प्रियजन
छोड़ अस्तित्व
बने स्मरन,
तू त्याग अहं
तोड़ मौन,
प्रेम और सम्मान
कर उसे अरपन।
न जाने कौन जनम
कौन धरा
होगी तेरी उससे भेंट।
संभवतः हो समाप्त
तेरे सम्बन्धों का खाता
और हो यही अन्तिम भेंट।-
हमारे सारे प्रयास अक्सर बेकार जाते हैं ..
उतने तो कभी खुश नहीं होते 'लोग',
जितनी आसानी से बुरा मान जाते हैं ...!-
अकेलापन घर के सदस्यों से नहीं ,
हृदय से जुड़े प्रियजनों पर निर्भर करता है
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