Divyanshi Shukla   (✍️Div)
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Joined 21 November 2020


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Joined 21 November 2020
5 MAR AT 23:26

पहली मुलाकात थी हमारी
हर जगह शोर था
बस हमारे मध्य सन्नाटा सा था
उसने पहल की बात की
बताया संक्षेप में खुद को
अब पूछने लगा मुझको
मैंने भी व्यक्त किया खुद को
संक्षेप से भी कम संक्षेप में
मेरा चेहरा गुलाबी से लाल होने लगा
मेरा सर झुका झुकी नज़रें
न समझ आया क्या होने लगा
वो पूछ रहा था कुछ पूछना हो और पूछो
न जाने क्यों मैं सन्नाटे में थी
मैंने बहुत सोचा क्या पूछूंँ
फिर एकाध कोशिश के बाद
शब्द निकला कुछ नहीं
मुझ पर नजरें थी परिवार की
परिवार के हर व्यक्ति की
उस व्यक्ति की जिससे थी पहली मुलाकात।
अकुलाहट,झुंझलाहट,घबराहट सब थी
बस बात करने की समझ न थी।
फिर क्या एक ठहराव आया
सब रुके सब चले बस इससे आगे कोई बढ़ा नहीं।।

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5 MAR AT 22:49

मुलाकात कॉफी तक काफ़ी नहीं लगती
कहो तो बात दोनों घरों पर की जाए!

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5 MAR AT 22:43

मैं जब तुम्हारे मस्तक को चूमता हूं
मिल जाता है मुझे थोड़ा वात्सल्य
थोड़ा हर्ष,और महसूस होता है
आदिशक्ति से भेंट सा
हो जाता है अथाह ऊर्जा का संचार।

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5 MAR AT 22:33

मत छोड़ना खुद को कभी अकेला
क्योंकि आखिर में या तो तू खुद
या तेरा खुदा काम आता है।

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1 MAR AT 18:12

मेरे दृष्टिकोण में जीवन एक कविता है
और प्रत्येक व्यक्ति के लिए ’कविता’ की व्याख्या हर बार अलग ही होती है।

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1 MAR AT 18:04

हमउम्र हर मोड़,हर जगह नहीं मिलते
जो मिले उसकी उम्र में ढल जाओ।

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24 JAN AT 22:02

न जाने क्यों
सहसा एक सुखद अनुभूति होती है
जब वो मेरे पीठ पर लटके दुपट्टे,शाल
में अपना हाथ पोंछ जाता है
सभी के आंचल को नकारते हुए
बस मेरे आंचल को पाने के लिए
उसका यूंँ दौड़ कर आना, थक हार कर आना
मेरे दुपट्टे से कर लेता है वो आड़ अपनी उन आंँखों पे
जिन पे पड़ रही होती है सूरज की तीखी नज़र
मुझमें सहसा दौड़ उठता है मांँ सा वात्सल्य
मैं अकारण ही क्षण भर के लिए मुस्कुरा उठती हूंँ।


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25 NOV 2023 AT 21:50

हम तुझे कुछ सुनाएंगे
हम दोनों के चुनिंदा सुनहरे
लम्हों को स्याही से
कागज पर सजाकर
धुन कोई अच्छी सी बनाकर
हम तुमको सुनाएंगे
मोहब्बत से मोहब्बत में
मोहब्बत को
हम तुमको बताएंगे।

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25 NOV 2023 AT 21:41

क्या हूंँ मैं
बिखरी हूंँ मैं
की सिमटी हूंँ मैं
मैं होश में
या बेहोश मैं
कोई सुध नहीं
बेसुध हूंँ मैं
है शोर चुभता
धीरे धीरे मन को मेरे
पूछती रहती हूं खुद से
कौन हूंँ मैं
ये बदरी की चादर
से गिरती मद्धम सी बूंद हूंँ मैं
बिजली कड़कती है जोर से
मेरे हृदय में
बस खुल कर किसी के सामने
कभी बरसी नहीं मैं।

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29 SEP 2023 AT 15:31

कुछ पक्के रिश्ते
कुछ सच्चे रिश्ते।

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