बुगला बुगला चांवळ दै,
सोने की सुपारी दूं।
चांवळ थारा धोळा-धोळा।
म्हे बेंचाला तोळा-तोळा ।
तूं रमै नंद्या री पाळ-पाळ।
मछल्यां बचै बाळ-बाळ।
म्हे बुलावां तूं आवै कोनी।
सुनार सुपारी बणावै कोनी।
नींतर,दाम लागेला पूरा-पूरा।
होवेला चांवळ थारा चूरा-चूरा।
भर ज्यां म्हाखा झोळा-झोळी।
अबार घणी रेवै मोळा-मोळी।
बुगला बुगला चांवळ दै।
सोने की सुपारी दूं।
norat mal singaria (neeraj)
-
बूंद-बूंद से भरता हूँ रिक्त कलश ,कल के सपन... read more
टीण्टोड़ी टींउ-टींउ।
पताळ पांणी पींउ-पींउ।
पताळ पांणी उण्डो।
भर कुंण कुण्डो।
अण्डा थारा पांणी मै
फिर क्यूं मांगै रांणी मै
रांणी बैठी म्हेला मै
आवै कोनी गेला मै
म्हे तो खेला गुवाड़ी मै
तूं क्यूं उड़ै बाड़ी मै
तनै जिमावां थाळी मै।
दीयां जोवां दिवाळी मै।
रंग उड़ावां फागण मै ।
मंजिरा बजावां जागण मै।
अण्डा दिख्या गीला गारा मै ।
आज्या तु रक दै भखारा मै।
टीण्टोड़ी टींउ-टींउ।
पताळ पांणी पींउ-पींउ।
norat mal singaria(neeraj)
-
काचर-बोर-मतिरा लाग्या
टिण्डसी रा टोरा लाग्या।
टाबर-टिंगर टोळी म भाग्या।
राम्यो आयो,राज्यो आयो,
पंडाळे हेटे न्हाघ्या।
भर-भर पांणी थैल्यां म ढब्बु बणाग्या।
छाछ-राबड़ी सबड़-सबड़ पिग्या।
मेह म उछळ-कूद करता अणूता भिग्या।
आली रेत म घाल्यो फाबो मेल चूणाग्या।
म्हेइ चूणाया,म्हेइ भिटाण्या,
बाळपणा म घणा खेल खिलाग्या।
घाल घोचो शूळ म कागद की चकरी उड़ाग्या।
मूण्डो थूंतार कट्टा हुया पण दोस्ती जूड़ाग्या।
काचर-बोर-मतिरा लाग्या ।
टिण्डसी रा टोरा लाग्या।-
भाइड़ा ! रामजी का नाम थ्है तो भूलो मति रे।
जै जै शिव-शंकर कैलास-पति रे।
कर् या करो नित अगरबति रे।
काम पड़्या काम आओ, थ्है तो नटो मति रे।
ज्ञान देवे मां सरसति रे।
भाइड़ा ! रामजी का नाम थ्है तो भूलो मति रे।
आडा गेला थ्है तो उबो मति रे।
उण्डा समद थ्है तो जाओ मति रे।
कांची कोंपळ थ्है तो तोड़ो मति रे।
चोखी संगत थ्है तो छोड़ो मति रे।
भाइड़ा ! रामजी का नाम थ्है तो भूलो मति रे।
नोरत मल सिंगारिया (नीरज)
-
इटकण बिटकण ।
दही चटोकण ।
बुवा-बाई आ गी ।
बिझणो चटका गी ।
बिझणा की लांबी डोर ।
ओइ चिट्यो चोर ।
-
झिर-मिर,झिर-मिर मेवलो बरसै।
अर कागा-मोर-चिड़कली हुळसै।
उमस री बैरी बिरखा, हिवड़ो सांत करै।
चालै ठण्डी बायरी अर करसो पांत करै।
दिन उग्या-आंत,तरस्या घणां नैण।
अबै घूमर घालळ लाग्या सगा-सैण।
बळती रज म्हे पावंडां पड़ता दोरा।
अबै बाळक-बुढिया रम रया सोरा।
पोखरा-नाडी-नाळा रीत्या पियाळ।
अबै उफण रया पाणी पाळम पाळ।
अणूंतो अमिजो मिच-मिच आंक्यां ।
अबै बण रयी नित नुइ-नुइ झांक्यां।
पसीनां सूं किचम-किच बुगतरी-पाग।
अबै अदमाणस दे रया ब्याजूणी लाग।
पान-पत्ता रूंखां रा पीळा पड़ग्या लुवां सूं।
अबै खेळी-पावंडी पाणी निपजै कुवां सूं
मिनख जमारौ दोरा घणो,बिण बरस्या पांणी।
थळी ऊबी बिरखा सागै नाचै जेट-जेटांणी।
नोरत मल सिंगारिया (नीरज)
-
मौसम आज पतंगों का है।
नभ में राज पतंगों का है।
खेल धागों से बंधे रंगों का है।
हर छत पर मजा दंगों का है।
सर्र से सरकता धागा ।
कटी पतंग ले भागा ।
सैर - सपाटा बाल - उमंगॊं का है।
जमघट छतों पर मस्त - मलंगों का है।
पतंगी - रुतबा तो बस दबंगों का है।
पतंग कटी जैसे सांस कटी ।
सरका धागा बस आंख फटी ।
मौसम आज पतंगों का है ।
नभ में राज पतंगों का है ।
-
अंकीय पद्धति पर घूमता है संसार,
चलदूरभाष यंत्र में समाहित नेत्र।
रक्षा-कवच हरित-पट्टिका धरा की,
विनष्ट स्व-कर से,जलमग्न-क्षेत्र।।
करुण-रुदन मध्य उच्च कलश सह
तृण-तृण हुआ प्रवाहित अतिवृष्टि से।
मानव-मन सजग कब था,वह मुदित,
स्व-निर्माण से,उल्लसित स्व-दृष्टि से।
याचक बन धरा माँगती कब है पुत्र से,
स्व-रक्षार्थ भिक्षा;होकर निष्प्राण भी।
निज-अर्थ त्याग रहा है कभी व्रत यहाँ,
समय-गति से निष्फल हुआ त्राण भी।
मन सुमन हो सकता है अभी भी,
सुसंगत सुपथ व हृदयस्थ सुकृति से।
बीज भरकर निज कर में,प्रकीर्णन,
उसका कर दो,बारम्बार आवृति से ।
-
मुझे अब किसी से कोई सरोकार नहीं रखना।समय के साथ व्यक्ति का महत्व खत्म हो जाता है। बनना-बिगड़ना सब समय का खेल है। इस पर किसी का कोई जोर नहीं चलता है। उस व्यक्ति से सदैव दूर रहना चाहिए जो छोटी सी बात "जो केवल मजाक का हिस्सा हो" ,पर क्रुद्ध होकर अपनों से दूरियाँ बना ले । हां,मैं इस बात से खुश हूँ कि यह समझ लिया है कुछ दिनों से । बस..........।
-