Harendra Singh Lodhi   (The Spiritual Wanderer)
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Joined 26 May 2020


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3 APR AT 10:43

सखी...!
गांवों के मरने में
कुछ हाथ उन लोगों का भी रहा
जिन्होंने किया तिरस्कार
अपने पुरखों की बोलियों का,
विकास के नाम पर बोली आंग्ल भाषा
अथवा शहरी शब्दावली,
पर सखी...! एक बात कहूं
आंचलिक बोलियों में
गांवों का अस्तित्व था ।

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29 MAR AT 10:32

बड़े भैया ने कहा कि वह बाप है मेरा,
उसमें दोष देखना का अधिकार नहीं मुझे।
अतः तर्क और बुद्धि को छिटक कर
मैं बस उनकी सेवा कर रहा हूं।

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29 MAR AT 10:28

मैंने पूछा: "अब हिम्मत कहां से आती है?"
उसने कहा:" पापा से... "
मैं चौंका और फिर से प्रश्न किया कि
तुम्हारे पापा तो अब नहीं हैं ।
उसने मुस्कुरा के कहा: हैं... सर्वदा हैं "
पापा देह जगत के बंधनों से परे
विचार थे इसलिए वे मेरे लिए थे,
हैं और हमेशा रहेंगे
और मुझे हमेशा हिम्मत देते रहेंगे।

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24 MAR AT 15:02

बुढ़ापा अक्सर याद करता है
और मुस्कुराता है।

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24 MAR AT 14:43

उसने पूछा कि मां को लेकर
क्या यादें हैं...?
तो अनायास ही मेरे मुँह से निकला कि
मां तो अद्भुत थी।

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24 MAR AT 14:35

फिर मैंने अपने बेटे से कहा कि
मैं अपनी तरह का
अकेला आदमी था पूरे गाँव में ,
घुला-घुला एक अघुलनशील आदमी।

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22 MAR AT 11:59

श्वान हो गए हैं पिता ;
खिसकते खिसकते उनकी चारपाई
अब घर के बाहर आ चुकी है।

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22 MAR AT 11:27

मरघट से बड़ा
कोई मन्दिर नहीं... सखा!

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20 MAR AT 17:09

कौए अद्भुत हैं
और असाधारण भी,
वे कदाचित कड़ी हैं
इह लोक
औ उह लोक के मध्य ,
कहते हैं
वे वाहक भी हैं
मृत, अदृश्य पूर्वजों के।

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10 MAR AT 10:47

निसंतान दंपत्तियों के मरने पर
अनाथ रह गए
उनके घर-आंगन,
कबर की मिट्टी के जैसी दमघोंटू धूल
जमा हो गई उनके ऊपर,
दीवारों की संघों से
झांकने लगे पीपल औ
कीकर के अवांछित वृक्ष,
अपने वाशिंदों के चले जाने के बाद
वे हो गए मजबूर जीने को
एक तिरस्कृत और बोझिल जीवन।

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