शिव अर्थात् शुद्धतम चेतना
भय, ईर्ष्या, पूर्वाग्रह,क्रोध अथवा पक्षपात
से सर्वथा परे।-
प्रक्रिया और परिणति में
पक्षपाती मत होना... सखी!
दोनों ही आवश्यक हैं।
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अब मैं मात्र एक यायावर हो चुका हूं... सखी!
मंजिल मेरे लिए अब मायने नहीं रखती।-
हमारे माँ बाप जो कहते हैं
वो एक इतिहास होता है;
एक ऐसा इतिहास जो
हमें पता नहीं,
पर स्मरण रहे सखी!
उस इतिहास में कुछ भी निराधार नहीं।-
सखी...!
गांवों के मरने में
कुछ हाथ उन लोगों का भी रहा
जिन्होंने किया तिरस्कार
अपने पुरखों की बोलियों का,
विकास के नाम पर बोली आंग्ल भाषा
अथवा शहरी शब्दावली,
पर सखी...! एक बात कहूं
आंचलिक बोलियों में
गांवों का अस्तित्व था ।-
बड़े भैया ने कहा कि वह बाप है मेरा,
उसमें दोष देखना का अधिकार नहीं मुझे।
अतः तर्क और बुद्धि को छिटक कर
मैं बस उनकी सेवा कर रहा हूं।-
मैंने पूछा: "अब हिम्मत कहां से आती है?"
उसने कहा:" पापा से... "
मैं चौंका और फिर से प्रश्न किया कि
तुम्हारे पापा तो अब नहीं हैं ।
उसने मुस्कुरा के कहा: हैं... सर्वदा हैं "
पापा देह जगत के बंधनों से परे
विचार थे इसलिए वे मेरे लिए थे,
हैं और हमेशा रहेंगे
और मुझे हमेशा हिम्मत देते रहेंगे।-