Harendra Singh Lodhi   (The Spiritual Wanderer)
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Joined 26 May 2020


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Joined 26 May 2020
1 MAY AT 10:40

सखी...प्रेम मैं मैंने
मस्तिष्क औ हृदय को
सदैव असंग रखा है,
मात्र आत्मा को ही संग रखा है।

क्या पता मस्तिष्क भूल जाए
औ हृदय रुक जाए।

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1 MAY AT 10:14

इज्जत के भ्रम के अतिरिक्त
मध्यम वर्ग पे
और कुछ नहीं होता... सखा!

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29 APR AT 10:28

कुछ जिन्दा पीठ...
दीवार होना चाहती हैं,
होने को आमदा भी हैं।
पर... जिन्दा पीठ भला कब दीवार हुईं हैं ?
हां...बस होने की स्पृहा अवश्य होती रहीं हैं।

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29 APR AT 9:47

वक्त का मिजाज कुछ ऐसा रहा कि...
शहर बड़े होते चले गए
औ घर लघु से लघुत्तम।

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29 APR AT 9:22

सावधान...सखा!
वे व्यवहारिकता के नाम पर
ओछापन परोस रहे हैं।

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27 APR AT 10:06

प्रकृति पर्याय है
सौन्दर्य का,
स्वास्थ्य का,
जीवन का।

पर्यावरण की कीमत पर
निर्माण कार्य
कोई विकास कार्य नहीं,
अपितु विनाश कार्य है।

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26 APR AT 20:37

मैं मोक्ष विचारता हूं,
पर...
इस गृह पर चल रही
नौटंकियों के देखकर
अक्सर...
मन बदल लेता हूं ।

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26 APR AT 10:23

रोग...
कविता अनुशीर्षक में पढ़ें।

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26 APR AT 10:05

वे जो अयोग्य हैं
नौकरी न मिलने पर
राजनेता बन जाएंगे,
फिर योग्यता, अयोग्यता के परे
सबका नेतृत्व करेंगे।

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25 APR AT 10:31

सखा!
जब प्रेम निज सत् चरम पर होता है
तो...भगवान भी
प्रेमियों के मध्य से हट जाता है।

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