वह शक्ति हमें दो दयानिधे,
कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें!
पर-सेवा पर-उपकार में हम,
जग-जीवन सफल बना जावें!-
टुक नींद से अंखियां खोल ज़रा, पल अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीति नहीं, जग जागत है, तू सोवत है
तू जाग, जगत की देख उडन, जग जागा, तेरे बंद नयन
यह जन जागृति की बेला है, तू नींद की गठरी ढोवत है !-
सुबह की ठंडी हवा,
दरवाजा खटखटा गई
उठ कर देखो भोर,
आँगन तक आ गई
वजह आँसुओं के हैं जो,
निशा सब बता गई
चन्दा बिछड़ेगा, चकोरी-
विरह गीत सुना गई
ग़म दिल के मिटाने सभी,
ऊषा फ़िर से आ गई
आम के पेड़ पर खगी,
कब से चहचहा रही
उठा दिया फ़िर से मुझे,
दुनिया फ़िर फँसा के गई
'बेवफ़ा हो तुम भी शिवि',
निंदिया ताने सुना के गई-
अंताभिमुख,
नुजूम-ओ-शब ढह
उदित रवि
परीतानंत
अब्र-ओ-शम सह
घिरा गगन
स्व प्रक्रिया से
जीस्त-ओ-जफर है
रवि अथ का
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नित एक नया सवेरा है
सूरज है धरती का रक्षक, उजियारे का पहरा है
अँधेरे को चीर के आता नित एक नया सवेरा है
वायू रुपी तिलक लगाए, ललाट मेघ का सेहरा है
अँधेरे को चीर के आता नित एक नया सवेरा है
वन,उपवन,नदी-झरने का राज़ बड़ा ही गहरा है
अँधेरे को चीर के आता नित एक नया सवेरा है
पशु-पक्षी, नर-नारी, यहाँ सबका रैन-बसेरा है
अँधेरे को चीर के आता नित एक नया सवेरा है
प्रकृति की काया में देखा हमने माँ का चेहरा है
अँधेरे को चीर के आता नित एक नया सवेरा है-
एक और
हो रही है
फिर भोर हो
रही है
प्रकृति अपनी
अद्भुत रचना से
सिरमौर हो रही है
एक और
हो रही है
फिर भोर हो
रही है....-
वर्ल्ड फोटोग्राफी डे
(आज प्रातः काल में मेरे द्वारा लिया गया छायाचित्र कंपनी परिसर की छत से)-
" प्रातः की ताजगी"
व्यर्थ बीते समय की चिन्ता जगी,
जब कभी भी ....
मिल सका अवकाश क्षण,
किन्तु क्षण मेरे हुए कब नष्ट ही,
हाथ में मेरे रहा प्रत्येक क्षण।।
तू निहित हो सृष्टि के प्रति अंश में,
कर रहा विकसित तृणों को ,शैल को,
अभय तुझसे ही मिला प्रतिपात्र को,
बीज को,फल को,विटप को,फूल को।।
अन्त होगा ही नहीं निज कार्य का,
सोच कर यह,मैं शिथिल नैराश्य मन,
निज शमन सोने गया ले खिन्नता,
थी उदासी पास जो वैराग्य तन,
किन्तु प्रातः दृष्टि जब मेरी खुली,
था खिला उपवन हमारे गात का,
खिल गई थी हर कली अन्तर्निहित,
मैं चकित था प्रात का वरदान था....!!!
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वो सुबह का शुध्द वातावरण
लगता हैं सुहाना बड़ा
सुकून का होता हैं प्रात: काल का
समय
जिसमें होती हैं
प्रकृति से मुलाकात मेरी
लेकर हाथो में चाय का प्याला-
जब कभी देर हो जाती है
कुछ यूं दबे पांव किरण आती है
पल भर में आलोक पसरता है
आहिस्ता से माहौल बदलता है
किरण कुछ यूं तत्परता से
इस कमरे से उस कमरे में जाती है
पर हर एक से नजर बचाती है
कहीं कोई पुछ न ले
क्या बात हुई जो देर हुई ?-