प्रकृति क्रोध कर सकती है
परन्तु ब्लॉक नहीं।
तुम प्रकृति प्रेमी नहीं,
प्रकृति बनना।-
बादलों से मेरे मन का गहरा रिश्ता है...
उमड़ना, घुमड़ना, गरजना, बरसना, ...
सब वही...-
सदाबहार प्रेम..
हम दोनों ही प्रेमी प्रकृति के
रंग-बिरंगी फूल पत्ते पौधों के
पर सबसे अधिक श्वेत रंग के
यूं तो सफेद रंग के फूल कई
मनलुभावन सुगंधित पुष्प कई
परंतु प्रिय कोमल फूल सदाबहार के
क्योंकि यह बारह माह खिलने वाले
प्रतीक हमारे सुमधुर प्रेम सुरभि के
- © श्रीरुप
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वृष्टि नाचत चहूं ओर, मेह गरजन करे मनभावन है
मृण में मिल कतरा वारि का, बगरत मधुर सुवास है
दिवा में वृष्टि निशा में वृष्टि, खलिहानों में दिखत हरियाली है
श्याम वर्ण में व्योम उक्त, क्षणप्रभा अभिरत अंकमाल है
मनमोहक चारु दृश्य से आच्छादित, प्रकृति बड़ी सुरम्य है-
लौट आएंगे एक दिन सब पस्त होकर,
ठीक पंछी की तरह जैसे लौट आती है
घोसलों में शाम होने पर।
लौट आएंगे सब,पतझड़ शहर से
जो वीरान हो गई है,
इस हरित जंगल में।
लौट आएंगे सब वापस वहां
जहां से चला था इंसान,
प्रगतिशील, विकासशील के रास्ते,
नए शहर, कारखाने बनाने,
घोसलें को नष्टकर,जंगल को काटकर।
लौट आएंगे सब और सीखेंगे फिर से,
तिनके से घोसला बनाना, प्रगतिशील होना।।
लौट आएंगे एक दिन सब जंगल की ओर....
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हिमालय पर निवास मेरू,
सैरा डांडा घुमदी रौं।
ठेठ पहाड़ की बोली भाषा,
मैं पर्वतों कू वासी छौं।।-
जिंदगी जीने का तरीका सीखना है तो, आदिवासी जीवनशैली स्वीकार कर लो, क्योंकि परिस्थिति को बदलने में समय नहीं लगता..
प्रकृति प्रेमी 🌿-