मतलब की जिंदगी जीने की, जो है रश्म हमें नहीं पता।
यहाँ इश्क़ कितना है, किसे किससे हमें नहीं पता।।
पाठशाला की ओर, बढ़ रहे हैं नादान, मस्ती में।
मिलेगी उन्हें ख़िदमत, या नहीं हमें नहीं पता।।
पता नहीं कैसे पहुँच गए है , हम इस मंज़िल तक।
ख़ुशनसीबी है हमारी, हमें तो रास्ता तक नहीं पता।।
मोहब्बत में सारी उम्र बीता दी हमने, दर्द सहते - सहते।
बेवफ़ाई कहते हैं किसे? बताओ हमें ये तक नहीं पता।।-
ऐसा मकतब भी कोई शहर में खोले ,
आदमी को जहां इंसान बनाया जाय...।।-
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मेरी प्यारी पाठशाला÷
मेरी पाठशाला कितनी मधुर स्वर गीत और बहुत सारे रचनायों का प्रतीक हैं यह हमें पढ़ लिख कर आगे बढ़ कर चलना सिखाया जाता है और शिक्षा और शिक्षकों टीचरों का आदर समान करना सिखा जाता हैं खेल कूद के साथ-साथ पढ़ाई लिखाई भी जीत की पहचान होती हैं पाठशाला पर डेर सारा प्यार बगीचे होता और बहुत भगवान का आशीर्वाद भी लिया जाता हैं हम भले ही माँ ने हमें जन्म हो पर हमारी ज्ञान की परवरिश हम अपनी पाठशालाओं से ही मिली हैं।
धन्यवाद-अपराजिता राॅय.-
स्पंदन पिंडलियों का भूल जाता है अक्सर,
मुन्नी को जब पाठशाला जाते देखता है...
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इस कदर खुदगर्ज बना लिया है
हमने खुद को
कि लोग हमे खुदगर्जी की पाठशाला
का अध्यापक कहते हैं-
जीवन एक पाठशाला है। हम यहाँ एक मुहूर्त के लिये भी
गुरु के बिना नहीं रहते। हमारे दैनिक जीवन में जो भी घटता है, जो भी मिलता है, वह अकारण ही नहीं होता, कुछ न कुछ सीख देने के लिये ही होता है। आवश्यकता है अपने गुरु को पहचानने की। जो सिखाया जा रहा है , जब तक हम नहीं समझते, उस अध्याय की पुनरावृत्ति होती रहती है।-
पाठशाला है एक पहेली,
जो सुलझी कुछ ही दिनों में,
बस गई वह यादें सिर्फ ज़हन मे,
और पीछे तो सिर्फ रह गई,
वह खाली बेंच पाठशाला की।
क्या वह दिन थे,
सुबह उठते स्कूल जाते,
पढ़ाई कम और नखरे बाज़ी ज्यादा करते,
दोपहर को घर आकर खाना खाकर सो जाते,
शाम को उठकर फिर,
दोस्तों के साथ खेलने जाते।
था बचपन हमारा सुहाना,
जब आँखे भी हमारी सफेद ही रहती थी,
ना जिम्मेदारी का बोझ था,
ना ही जिंदगी क्या है वह समझ पड़ती थी,
दोस्तों, पाठशाला, नखरे बाजी और,
खेलना ही हमारी जिंदगी थी जैसे।
इसीलिए तो पाठशाला को,
पहेली का नाम दिया,
के वो सुलझी तो सही,
लेकिन थोड़े वक़्त के लिए ही,
और पीछे तो रह गई सिर्फ बचपन की यादें।
-Nitesh Prajapati
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पहले खौफ़ आता था कभी, सुन...अब तो शौक़ आता है!
ऐ पाठशाला,तेरा हर रास्ता मेरी तरफ़,देख बे़रोक आता है!!
माँ की कोख़ पहला अध्याय, जहाँ दिल ने सीखा धड़कना!
दुनिया में एक के बाद एक हर दिन,नया एक दौर आता है!!
सबसे गहरे सबक तो तूने ऐ जिंदगी,दर्द दे-देकर सिखलाए!
छोटा-बड़ा,अच्छा-बुरा,शख़्स,लम्हा सीख,एक छोड़ जाता है!!
इब्तिदा से अंजाम तलक,है ज़ीस्त शागिर्द तेरे दरो-दीवार की!
जाते-जाते हर आदमी,तेरी किताब़ में पन्ना एक जोड़ जाता है!!-
साँवरिया से लागी म्हणै ऐसी प्रीत,
उनके रूप लावण्य में डूबा मेरा चित्त।-