हर किसी के लिए एक सी नहीं होती..
ये ज़ुबान भी लोगो का पहनावा देखती है-
तुम कुछ भी पहनो
मैं कुछ कहने वाला कौन हूँ?
मैं पिता भी हूँ, पुत्र भी और भाई भी।
परन्तु पहले एक पुरुष हूँ,
इसीलिये मौन हूँ।-
इश्क़ का पहनावे
से कोई वास्ता नहीं,
बीना कपड़ों के
चांद खुबसूरत है।-
जो लोग ये कहते हैं,
कि किसी लड़की के साथ,
गलत होने का कारण,
उसका गलत पहनावा है!!
तो सुन लो कान खोल कर,
अगर कुछ करना ही चाहते हो,
तो उन लोगों के आँखों पर पट्टी बाँधों,
जिनकी नज़रों में गंदगी भरी हुई है,
क्योंकि खुल कर जीने का अधिकार,
हम लड़कियों को भी है........!!!!!-
वज़ुद की फ़िक्र करने लगे हैं अब,
अब लगाता हैं अन्ज़ुमन की फ़िक्र करने लगे हैं,
गमे-शऊर की इस पहनायी में,
और अब तर्क़ किस बात करे,
मौत तो इक दिन आनी ही हैं,-
लिबास पे फितरत नहीं लिखी होती।
लाज़ - ओ - हया तो नजर में बसती।
पैमाइश करे कोई, कहां मंजूर मुझे...
मेरा किरदार ही लहज़े-ओ-तहज़ीब है।-
क्या फर्क पड़ता है
पहना किसने क्या है..
नजरें साफ रखों
देखों कहीं तुम्हें
हवस ने तों नहीं घेरा है..-
पहनावा बढ़ाए आत्मविश्वास
उंगली न उठे,ऐसा हो लिबास
तन के साथ मन भी हो स्वच्छ
हर एक पहनावा बनाए ख़ास-
अपनी जिंदगी है
तो पहनावा मन
मर्ज़ी का ही रहेगा
जो कुछ भी हो
बदलता समा रहेगा-