QUOTES ON #पलकें

#पलकें quotes

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15 JUN 2020 AT 14:06

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27 SEP 2020 AT 18:29

फ़िक्र में वो तमाम यादें, ख्यालों में उथल-पुथल दे गई,
मगर गई तो भी वो लेकिन मुझमें अपनी कमी दे गई!

नींदों में ख़्वाबों का रेला और यादों का नजराना दे गई,
हकीकी नहीं लेकिन फिर भी एक धुंधली तस्वीर दे गई!

आँखों में कतरे अश्कों के और पलकों में सैलाब दे गई,
जाते जाते खत में वो पहला पहल सूखा गुलाब दे गई!

आँखों मे अक्स दर अक्स और खुद की परछाई दे गई,
दूर बहुत दूर होकर भी लेकिन वो नजदीकियां दे गई!

खामोशियों में लफ्ज़ और लफ्ज़ों में खामोशी दे गई,
लेकिन अनकही बातों की दर्दभरी फ़ेहरिस्त दे गई!

दुआ में खुद और ख़्वाहिश में मन्नत का धागा दे गई,
सिंदूर के हक़ में वो लेकिन अपना सबकुछ दे गई!

रूह में मोहब्बत और मोहब्बत की एक मिसाल दे गई, _राज सोनी
सबकुछ छीन के मुझसे लेकिन वो अपना दुपट्टा दे गई!

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29 JUL 2020 AT 8:47

तम से भरी है हर निशा दिशा, चाँदनी भी है खफ़ा खफा,
चेहरा मुझसे तू ने छिपाया क्यूँ, चाँद का अब होगा क्या?

अमावस की है रोज रात यंहा, चकोर भी चुपचाप सा है,
घूँघट का पट तुम उठाओ जरा, चाँद का अब होगा क्या?

दिशा भ्रमित हुई पृरी धरा, सितारा साँझ का है गुम सुम,
क्यों आँखे ढकी है पलकों से, चाँद का अब होगा क्या?

चंद्र वलय है धुँआ धुँआ, श्रृंगार विहीन है ये पूरा आकाश
सोलह श्रृंगार से हो तू दूर क्यों, चाँद का अब होगा क्या?

बादलों का चाँद पर लगा है डेरा, उजास को निगल रहा,
चाँदनी को तुम यूँ ना कैद करो, चाँद का अब होगा क्या?

चाँद पर जो काला दाग है, वो खूबसूरती का निशान है,
जैसे काला तिल तेरे गाल पर, चाँद का अब होगा क्या?

करवा चौथ भी अभी दूर है, सावन को यूँ ना जाया कर, _राज सोनी
दिल के अरमां समझ जरा, "राज" का अब होगा क्या?

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26 MAY 2020 AT 9:22

सुनों......
अब मैं अपनी पलकों को भिगोना नहीं चाहती हूँ,
बस तुम्हारा दीदार कर,इन्हें आराम देना चाहती हूँ!!

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16 MAR 2020 AT 16:59

फिसल रहीं है सारी खुशियाँ पलकों से भिगकर
हर अपना बिछड़ रहा है मुझसे एक एक कर ।।

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28 MAY 2019 AT 14:50

जल रही हैं आँखे या जल रहा है ख़्वाब कोई?
ये क्या है जो सुलग रहा है पलकों तले?

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18 MAY 2019 AT 2:02

पलकों पर इतने सपने हैं कि,
सपने गिरने के डर से पलकें बंद नही होती....

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14 DEC 2019 AT 17:43

जमीं से ही नज़र आता है आसमाँ
आसमाँ ने कहाँ देखा है ज़मीं से आसमाँ
गर्ज कर गुमान मत दिखा मुझे ए-बादल
मेरे पतंग के पीछे छिपता-फिरता है आसमाँ
बुलंदी पर है तू ये जानते हैं ज़मीं के लोग
चलकर देख आए हैं यही लोग सारा आसमाँ
दंगे होते हैं ज़मीं पर ज़मीं के मेरे शहर रोज
तेरे लिए कौन ऊपर आकर झगड़ता है आसमाँ
तेरी गलियों के नज़दीक से गुज़रता है रोज
चाँद ठहरकर तेरा क्यों नहीं हो जाता आसमाँ
अपनी बुलदी से ज़मीं पर देखना किसी दिन औकात बेनाम की
पलकें बंद हुई जिस दिन आँखों में समा ले जाऊँगा सारा आसमाँ

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19 APR 2019 AT 12:40

पलकों की दीवारें झपकियों से भुला रही थी सब कुछ
औऱ आँखों से यूँ ही यादों का चिल्लाना होता रहा

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5 MAR 2019 AT 2:52

उन रातों को नही मिलता बिछौना पलकों का
नजरों ने की हो जब खता उन्हें देख लेने की ।।

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