घुमक्कड़ी तेरा इश्क़ लिखना शौक बन गया
सच्चाई लिखते लिखते पत्रकार तू बन गया
घुमाकर जो यूँ कान पकड़ बैठना तेरा
हर नेता हर मंत्री तेरा शाही मेहमान बन गया
सुधाकर-
आज ✍️हिंदी_पत्रकारिता_दिवस है !
कोई ईमानदार पत्रकार बचा हों
तो उन्हें शुभकामनाएँ 🙏-
पत्रकार हूं मैं -
मैं जाता हूं नुक्कड़, गली गली
लाता हूं हर खबर, जो भी चली
जनता तक पहुंचाने सच की तली
मैं जाता हूं नुक्कड़, गली गली ।।.....
मेरा नाम भी है, मैं बदनाम भी हूं
क्योंकि करता खुलासा सरेआम भी हूं
मैं जानता इसका अंजाम भी हूं
मेरा नाम भी है, मैं बदनाम भी हूं ।।.....
निर्भीक निष्पक्ष लिखता हूं मैं
कलम पर अपनी अडिग हूं मैं
कर्तव्य पथ पर सजग हूं मैं
निर्भीक निष्पक्ष लिखता हूं मैं।।.....
पत्रकार हूं मैं..-
अक्सर शोर-शराबे की बारिश पन्नों पर समेट लेता हूं ।
घुटन उधर भी है और इधर भी है ...।।
लेकिन उसे पूरी कायनात के सामने रख देता हूं ।।।
तभी तो अखबार कहलाता हूं ।।।।
© अजय भुजबळ-
निहत्थे है हम लोग गजब की जंग लड़ते हैं ।
कलम को हाथ मे रख कर अदब की जंग लड़ते हैं ।।
राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।-
स्वतंत्र पत्रकारिता, लोकतंत्र को सशक्त और जीवंत रखने का कार्य करती है।
Independent journalism serves to keep democracy strong and vibrant.-
न ओज लिखता हूँ, न ही श्रृंगार लिखता हूँ,
समाज की सिसकी व चीत्कार लिखता हूँ ।
हूँ वेदना का दस्तख़त काँटो में हूँ पला ,
शोलो पर चलता हूँ,तभी अंगार लिखता हूँ ।-
कितने ही पर्दे लगा लो, सब दिखता है ।
यह सत्ता का बाज़ार है यहाँ ईमान बिकता है ।।
झूठ और फ़रेब से सनी हैं यहाँ की गलियाँ ।
सच को सच कहाँ कोई अख़बार लिखता है ।।
जो लगा रहे हैं बोली देश की गली-चौराहों में ।
अख़बार उन्हें इस देश का पहरेदार लिखता है ।।
बेगुनाह होना ही सबसे बड़ा गुनाह है यहाँ ।
फूलों के गुलदस्तों को अब तलवार लिखता है ।।
कुछ बो रहे हैं काँटे, फूलों का अरमान लेकर ।
और अख़बार उन्हें मुल्क-ए-बरदार लिखता है ।।
कोई गुनाह समझे या कुछ और ज़माने के हवाले ।
जो अख़बार नहीं लिखता, यह क़लमकार लिखता है ।।-
बड़ी निष्ठा से वह कलम उठाते हैं
लिखते तो वह सिर्फ दो शब्द ही है
पर पूरी दुनिया को हिला देते हैं
पत्रकारिता दिवस हार्दिक शुभकामनाएं-