जब मैं छोटा था
पापा जोर से उछालते थे
आसमान की तरफ़
वो मुझे देखना चाहते थे
ख़ुद से ऊपर, ऊंचाइयों में
मैं निडर हो
ख़ूब खिलखिलाता था
मैं जानता था
पापा मुझे कभी नीचे गिरने नहीं देंगे ।-
तुझे पूरी रात जी भर कर देखने की तमन्ना थी,
मगर कमबख़्त तेरी याद ने मुझे सोने न दिया ।-
मेरी उनींदी आँखों में फिर ख़्वाब दे गया है कोई,
मेरे ज़ख़्मी हाथों में काँटों भरा ग़ुलाब दे गया है कोई ।
लड़खड़ाने लगें हैं मेरे क़दम फिर से मोहब्बत में,
मेरे अधरों पे अपने अधरों का शराब दे गया है कोई ।।
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मेरी जीत में
आज वो भी शामिल हैं.....
जो हर बार
मेरी हार का इंतज़ार किया करते थे ।-
संत्रास, ऊब और निराशा से व्यक्ति के अंदर पलायनवादी भाव उत्पन्न होने लगते हैं । मोहभंग की स्थिति में वह एकांत की तलाश में निकल पड़ता है ।-
संत्रास, ऊब और निराशा से व्यक्ति के अंदर पलायनवादी भाव उत्पन्न होने लगता है ।
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आदमी जब अपनी अंतिम उम्मीद खो देता है, तब वह अपने अंतिम निष्कर्ष पर पहुँच जाता है ।
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ये अँधेरे
बहुत ज़्यादा जकड़ चुके हैं मुझे,
डर है कहीं इन अँधेरों में
हमेशा के लिए खो न जाऊं मैं ।-