अमलेश कुमार   (अमलेश कुमार)
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Joined 23 May 2018


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Joined 23 May 2018

जब मैं छोटा था
पापा जोर से उछालते थे
आसमान की तरफ़
वो मुझे देखना चाहते थे
ख़ुद से ऊपर, ऊंचाइयों में

मैं निडर हो
ख़ूब खिलखिलाता था
मैं जानता था
पापा मुझे कभी नीचे गिरने नहीं देंगे ।

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तुझे पूरी रात जी भर कर देखने की तमन्ना थी,
मगर कमबख़्त तेरी याद ने मुझे सोने न दिया ।

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तेरे गिर जाने का मुझे अफ़सोस नहीं,
अफ़सोस है कि कभी तेरे क़ायल थे हम ।

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मेरी उनींदी आँखों में फिर ख़्वाब दे गया है कोई,
मेरे ज़ख़्मी हाथों में काँटों भरा ग़ुलाब दे गया है कोई ।

लड़खड़ाने लगें हैं मेरे क़दम फिर से मोहब्बत में,
मेरे अधरों पे अपने अधरों का शराब दे गया है कोई ।।

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मेरी जीत में
आज वो भी शामिल हैं.....
जो हर बार
मेरी हार का इंतज़ार किया करते थे ।

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15 NOV 2024 AT 19:44



संत्रास, ऊब और निराशा से व्यक्ति के अंदर पलायनवादी भाव उत्पन्न होने लगते हैं । मोहभंग की स्थिति में वह एकांत की तलाश में निकल पड़ता है ।

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15 NOV 2024 AT 19:29

संत्रास, ऊब और निराशा से व्यक्ति के अंदर पलायनवादी भाव उत्पन्न होने लगता है ।

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12 NOV 2024 AT 17:44

आदमी जब अपनी अंतिम उम्मीद खो देता है, तब वह अपने अंतिम निष्कर्ष पर पहुँच जाता है ।

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10 NOV 2024 AT 21:28

ये अँधेरे
बहुत ज़्यादा जकड़ चुके हैं मुझे,
डर है कहीं इन अँधेरों में
हमेशा के लिए खो न जाऊं मैं ।

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ओ मेरे अशांत मन !
चल ले चल
कहीं दूर....
किसी एकांत की तलाश में ।

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